तारा रानी: तिरंगे पर कुर्बान जिंदगानी



प्रतिभा कुशवाहा
स्वतंत्रता आंदोलन में अनगिनत महिलाओं ने अपना खास योगदान दिया। यह दूसरी बात है कि इतिहास की किताबों में उनका नाम शामिल न हो। देशप्रेम से ओत-प्रोत ऐसी महिलाएं किताबों में दर्ज होने से रह गई हों, पर हमारे आसपास के लोगों की जुबान से ऐसे किस्से सुने जाते हैं। हो सकता है कि यह महिलाएं किसी एलीट समाज से ताल्लुक न रखती हों, उनकी पढ़ाई-लिखाई भी उच्च स्तर की न रही हों, पर देश के प्रति अपने कर्तव्य को निभाने का जज्बा किसी स्तर से कम नहीं था। इसी तरह की विशेषताओं से परिपूर्ण देशभक्त तारा रानी श्रीवास्तव थीं। उनकी देश के प्रति प्रतिबद्धता और भावना बेजोड़ थी।
तारा रानी का जन्म पटना के पास सारण में हुआ था। साधारण परिवार में पली-बढ़ी तारा का विवाह छोटी उम्र में ही फुलेंदु बाबू से कर दिया गया। फुलेंदु बाबू स्वयं देशप्रेमी और स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। ऐसे माहौल में तारा रानी के देशप्रेम को अभिव्यक्त करने का पूरा अवसर मिला। वे पति के साथ आजादी के आंदोलन में कूद पड़ीं।
तारा रानी के समय स्त्रियों को खास बुनियादी अधिकार तक प्राप्त नहीं थे। वे घर की चाहरदीवारी में रहना और रखा जाना पसंद भी करती थीं। ऐसे माहौल में भी तारा रानी महात्मा गांधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में भाग लेने निकल पड़ीं। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। चारो तरफ आंदोलन का माहौल था। वे प्रदर्शन के लिए बढ़-चढ़कर भाग ले रही थीं, इसके लिए वे महिलाओं को प्रेरित भी कर रही थीं कि वे घर से बाहर निकल आंदोलन में भाग लें।
इस दौरान तारा और उनके पति फुलेंदु बाबू ने एक प्रदर्शन का आयोजन करने की ठानी। इसके लिए आम लोगों को प्रेरित किया जाने लगा। लोगों को नियत दिन एकत्र करके तारा और फुलेंदु बाबू ने सिवान पुलिस स्टेशन तक मार्च करने का निर्णय लिया। उनका उद्देश्य पुलिस स्टेशन की छत पर तिरंगा फहराकर अंग्रेजों यह बताना था कि भारत अखंड है। इस जुलूस का नेतृत्व तारा और फुलेंदु बाबू के हाथ में था। उनके ऐसे इरादे भांपकर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हरसंभव रोकने की पूरी कोशिश की। प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक रोकने की कोशिश के बाद उन पर लाठीचार्ज किया गया। पर जब पुलिस की लाठी भी उन्हें रोकने में सफल नहीं हुई, तो गोली चलाने का निर्देश दे दिया गया।
तभी एक गोली तारा के पति फुलेंदु बाबू को लग गई। वे तत्काल तारा के देखते ही देखते जमीन पर गिर गए। इस क्षण कोई भी सोच सकता था कि अपने पति को गोली लगते देख तारा प्रदर्शन करना छोड़ अपने पति को संभालने जातीं, पर तारा ने वह कदम उठाया जो एक देशप्रेमी ही कर सकता है। अपने पति की सहायता करने के बजाय वे मार्च को लेकर आगे बढ़ती रहीं। वे पुलिस स्टेशन की छत पर तिरंगा फहरा कर ही मानीं। बाद में वे पति के पास लौटीं, घायल पति ने उनके सामने दम तोड़ दिया। देश की आजादी के लिए कुर्बान हो गए।
15 अगस्त, 1942 में छपरा जिला में उनके पति के सम्मान में एक प्रार्थना सभा आयोजित की गई। अपने पति को खो देने के बावजूद तारा रानी देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करती रहीं, जबतक देश आजाद नहीं हो गया। अपने पति की जान को तिरंगे के सम्मान से अधिक कीमती न मानने वाली तारा रानी को आज देश सलाम करता है।


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