या फिर तपती रेत धूप हो या गिरता हो मुसलाधार ।।
कदम पड़े जो पत्थर पर पड़ता जाए अमिट छाप।
पग बाधा को तोड़ कर मानव छोड जाओ एक अमिट छाप।।
धीर धरो जो मन में तो हासिल कर सकते तुम जीत।
हिम्मत और साहस से तुम गढ़ सकते तुम फिर नई एक जीत।।
तिमिर तोम तुम हर सकते हो ज्ञान दीप का फैलाकर प्रकाश।
अँधकार की काली छाया छट जाएगी अपने आप।।
पत्थर के सीने से पानी फिर चीरकर जब लोगे निकाल।
इतिहास तुम्हें भी भागीरथ कहकर पुकार लेगा फिर अपने आप।।
सिलपर नाम खुदा कर भी बोलो किसने क्या पाया है।
नाम छपे जो मन मानस में इससे अच्छा क्या रास्ता है।।
अब करलो अपनी तैयारी बर्तमान तुम्हें कर रहा पुकार।
फिर इतिहास के रजत पन्नों पर स्वर्ण जड़ित अंकित होंगे आप।।
- कमलेश झा, दिल्ली।
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