लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि सरकार से सुरक्षा पाने के लिए खतरे के आकलन का आधार संबंधित व्यक्ति की व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं हो सकती। राज्य सरकार की ओर से सिर्फ उन्हीं लोगों को सुरक्षा प्रदान की जाए, जिन्हें समाज या राष्ट्र हित में कार्य करने के कारण आतंकियों, नक्सलियों या संगठित गिरोहों से खतरा है। कोर्ट ने फैसले के अनुपालन के लिए इसकी कॉपी मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव गृह व डीजीपी को भेजने का आदेश दिया है। साथ ही सरकारी सुरक्षा देने की गुहार वाली एक वकील की याचिका को मेरिट विहीन करार देकर खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने यह फैसला व आदेश एक अधिवक्ता अभिषेक तिवारी की याचिका पर दिया। कोर्ट ने निर्णय में टिप्पणी की कि सरकार और करदाता के धन से सुरक्षा प्राप्त कर के खुद को वीआईपी दिखाने की संस्कृति चल रही है, इस प्रैक्टिस को रोकना होगा। सुरक्षा प्राप्त करने के लिए खतरे का आकलन वास्तविक होना चाहिए। सुरक्षा समिति इसके सटीक आकलन के लिए खुफिया एजेंसी व संबंधित थाने से रिपोर्ट प्राप्त करे। जिस व्यक्ति ने सुरक्षा की मांग की है, उसका पिछला रिकॉर्ड भी देखा जाना चाहिए।
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