- शिवचरण चौहान

उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में धान की फसल अभी लहरा रही है। इसके बाद धान गलेथ पर आएगा और धान की बाल में चावल पड़ेंगे। इस बार मौसम विभाग के सारे अनुमान झूठे निकले। पहाड़ों पर बहुत तेज पानी बरसा भूस्खलन हुआ पहाड़ टूटे नदियां उफ नाई। और फिर बादल एकदम से आसमान से गायब हो गए। सावन पूरा उमस और गर्मी में बीता।



 उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ इलाकों के किसान अपनी किस्मत को कोस रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही मौसम विभाग ने घोषणा की थी की उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्य प्रदेश के कई इलाकों में झमाझम बारिश होगी। पर मौसम विभाग झूठा निकल गया। बादल तो आए और पूरे उत्तर प्रदेश तथा आसपास के क्षेत्रों में आए भी  पर झमाझम की बजाए कुछ बूंदें टपका कर वापस भाग गए । आज मौसम विभाग के पास आधुनिक उपकरण है आसमान में घूम रहे उपग्रह हैं जो मौसम की सटीक भविष्यवाणी कर सकते हैं। इस वर्ष मौसम विभाग ने घोषणा की थी कि कृषि क्षेत्र में बहुत अच्छी बरसात होगी।
उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में औसत से बहुत कम बारिश हुई है। बादल बरसे तो पर महानगरों और शहरों में। गांव में यहां बरसात की आवश्यकता थी बहुत कम बारिश हुई है। कम बरसात के कारण धान के किसान परेशान है और फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ गया। किसानों ने जितना सोचा था वैसी फसल नहीं होने वाली। सरकार तो कृषि विधेयकों में परेशान है पर किसान अपने माथे पर हाथ रखे आसमान निहार रहे हैं कि मानसून नहीं आ रहा है। शायद इंद्रदेव मेहरबान हो जाएं और उसका लाखों रुपए का डीजल बिजली का खर्च बच जाए।
 आज भी हमारी भारतीय कृषि घाघ और तुलसीदास पर ही आश्रित है। इस समय पूरे भारत में कांस फूल गए हैं । खंजन पक्षी गांव में आकर फुदकने लगे हैं। गोह बोलने लगी है।
 मौसम विज्ञानी कवि घाघ ने लिखा था-
         बोली  गोह और फूले कांस, अब बरखा की छोड़ो आस ।।
कांस फूल गए और रात में गोह बोलने लगी अब बरसात चली गई। महाकवि तुलसीदास चित्रकूट अयोध्या काशी आदि उत्तर प्रदेश के तमाम इलाकों में रहे थे। तुलसीदास का मौसम और ज्योतिष का अच्छा ज्ञान था। तुलसीदास ने लिखा है
    उदित अगस्त पंथ जल सोखा। जिमि लोभाहि सोखे सन्तोखा ।।
आसमान में अगस्त नक्षत्र यानी अगस्त तारा उदय होने के साथ ही बरसात का अंत माना जाता है। महाकवि तुलसीदास ने मौसम का वर्णन बहुत अच्छे ढंग से कलात्मक ढंग से किया है। पूरे रामचरितमानस में अगर कविता अपने भव्य रूप में है । कविता का सौंदर्य देखना है तो तुलसी का किष्किंधा कांड  पढ़ना चाहिए । तुलसीदास लिखते हैं
 बरखा गत निर्मल ऋतु आई। सुधि न तात सीता कर पाई ।।
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 कहूं कहुं वृष्टि सारदी  थोरी। कोऊ इक पाव भगति जिमि मोरी।।
 जब रात में ओस पड़ने लगे तो समझ लेना चाहिए बरसात खत्म और शरद ऋतु का आगमन हो गया है। इन दिनों यही हो रहा है। दिन में बहुत कड़ी धूप निकलती है और रात में आसमान से ओस गिरती है। अब बरसात गई। अब किसान को नलकूप, नहरों और अपने अन्य साधनों से धान के खेत की सिंचाई करके उसे बचा लेना चाहिए वरना तो सरकार आय दोगुनी करने के चक्कर में खुश होती रहेगी। खेती तो है ही मानसून का जुआ। वरना जो हालात हैं तुलसी बाबा पहले ही लिख गए हैं-
   खेती न किसान को, भिखारी को न भीख बलि
   बनिज को ना बानिज ना चाकर को चाकरी ।
   जीविका बिहीन लोग सीध मान सोंच बस
    कहै एक एकन सो ,कहां जाई  का करी।।
 रामचरितमानस पढ़कर ऐसा लगता है कि तुलसीदास को मौसम और ज्योतिष का बहुत अच्छा ज्ञान था। तभी तो 500 साल पहले आज तक का भविष्य लिख गए हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम चक्र बिगड़ गया है। धरती का गुरुत्वाकर्षण केंद्र बदल रहा है इस कारण में पहाड़ दरक रहे हैं। शीघ्र ही जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कारगर प्रयास नहीं किए गए तो विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को अपने संबोधन में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम से निपटने के लिए भारत में हाइड्रोजन हब बनाने की घोषणा की है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीक़ार हैं)

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