- सत्येंद्र प्रकाश तिवारी
ज्ञानपुर, भदोही।

भाई-बहन का रिश्ता आत्मा की तरह पवित्र है। रक्षा बंधन के त्योहार का सार आत्मिक बंधन है। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का बंधन असल में आत्मिक बंधन है। रक्षा का भाव वाला बंधन। रक्षा का भाव आत्मा से आता है। रक्षाबंधन पर्व बहिन द्वारा भाई की कलाई में राखी बांधने का त्यौहार भर नहीं है, यह एक कोख से उत्पन्न होने के वाले भाई की मंगलकामना करते हुए बहिन द्वारा रक्षा सूत्र बांधकर उसके सतत् स्नेह और प्यार की निर्बाध आकांक्षा भी है।



रक्षाबंधन एक अनूठा उत्सव है, जो न तो किसी जयंती से संबंधित है और न ही किसी विजय-राजतिलक से। इस त्यौहार के तीन नाम हैं- रक्षाबंधन, विष तोड़क और पुण्य प्रदायक पर्व। यद्यपि प्रथम नाम अधिक प्रचलित है। दूसरी विलक्षणता है इसके मानाने की विधि। यह विधि बहुत ही स्नेह संपन्न, दिव्यता युक्त व मधुर है। इसे मनाने की सामग्री ही ऐसी है जैसे किसी से कोई बात मनवाने, उससे कोई वचन लेने या उससे अपने संबंधों में पवित्रता और स्नेह लाने के समय प्रयोग की जाती है। स्वाभाविक रूप से मनुष्य को किसी प्रकार का बंधन अच्छा नहीं लगता है। अत: मनुष्य जिस बात को बंधन समझता है वह उससे छूटने का प्रयत्न करता है, लेकिन रक्षाबंधन ऐसा प्रिय बंधन है जो प्रत्येक भाई दूर से चलकर अपनी बहन के इस बंधन में बंधना चाहता है। यह बंधन ईश्वरीय बंधन है इसलिए प्रत्येक प्राणी खुशी से बंधने के लिए तैयार रहता है।
वास्तव में बंधन शब्द प्रतिज्ञा का प्रतीक है और रक्षा मनोविकारों से बचाव का प्रतीक है। तिलक आत्मिक स्मृति का प्रतीक है और विजय हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। राखी व धागा प्रतिज्ञा में दृढ़ता का प्रतीक है। परस्पर अटूट स्नेह का प्रतीक है, जिससे हमारे मन के विचार, मुख के बोल व कर्म किसी भी विषय विकारों के अधीन न हों। मिठाई जीवन के दिव्य गुणों, मानवीय, नैतिक गुणों का प्रतीक है। खर्च का अर्थ केवल स्थूल धन से नहीं, बल्कि बुराइयों को समाप्त करने से है। जो भी कमजोर संकल्प हमारी उन्नति में बाधक हैं या कोई हमारा ही स्वभाव, संस्कार जो हमें खुशनुमा जीवन नहीं जीने देता उसे समाप्त करना है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts