- सत्येंद्र प्रकाश तिवारी
रक्षाबंधन एक अनूठा उत्सव है, जो न तो किसी जयंती से संबंधित है और न ही किसी विजय-राजतिलक से। इस त्यौहार के तीन नाम हैं- रक्षाबंधन, विष तोड़क और पुण्य प्रदायक पर्व। यद्यपि प्रथम नाम अधिक प्रचलित है। दूसरी विलक्षणता है इसके मानाने की विधि। यह विधि बहुत ही स्नेह संपन्न, दिव्यता युक्त व मधुर है। इसे मनाने की सामग्री ही ऐसी है जैसे किसी से कोई बात मनवाने, उससे कोई वचन लेने या उससे अपने संबंधों में पवित्रता और स्नेह लाने के समय प्रयोग की जाती है। स्वाभाविक रूप से मनुष्य को किसी प्रकार का बंधन अच्छा नहीं लगता है। अत: मनुष्य जिस बात को बंधन समझता है वह उससे छूटने का प्रयत्न करता है, लेकिन रक्षाबंधन ऐसा प्रिय बंधन है जो प्रत्येक भाई दूर से चलकर अपनी बहन के इस बंधन में बंधना चाहता है। यह बंधन ईश्वरीय बंधन है इसलिए प्रत्येक प्राणी खुशी से बंधने के लिए तैयार रहता है।
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