सुखराम दिन-रात श्रीकृष्ण भक्ति में लीन रहता था। घर में चारों ओर श्रीकृष्ण के चित्र और मूर्तियां लगी हुई थीं। काम के बाद जो समय मिलता, सब श्रीकृष्ण भक्ति में लगता था। अपने इस भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार श्रीकृष्ण ने इसे दर्शन देने की सोची और एक दिन एकांत में उसके घर पधारे। सुखराम को भक्ति में लीन देखकर उससे पूछा, ‘भक्त, यह घर किसका है?’ भक्त भावविह्वल होकर बोला, ‘प्रभु, आपका।’ फिर सवाल हुआ, ‘बाहर खड़ी बैलगाड़ी किसकी है?’ ‘प्रभु, आपकी।’ जवाब मिला। फिर कृष्ण ने धीरे-धीरे सभी वस्तुओं के बारे में पूछा, भक्त का एक ही जवाब था, ‘प्रभु, आपका।’ श्रीकृष्ण ने आनन्दित होकर पूछा, ‘यह तेरा शरीर किसका है।’ भक्त भी पक्का भक्त था, तुरंत बोला, ‘जी, यह भी आपका ही है।’ अंत में श्रीकृष्ण पूजा घर में पहुंचे और अपनी तस्वीर की ओर इशारा करके पूछा, ‘यह तस्वीर किसकी है?’ सुखराम ने तुरंत दौड़कर तस्वीर उठा ली और सीने से लगा ली। फिर आंखों में आंसू भर कर बोला, ‘सिर्फ यह तस्वीर मेरी है, बाकी सब आपका है।
No comments:
Post a Comment