डा. ओपी चौधरी

किसी ने ठीक ही लिखा है कि जिंदगी कर्कश अनुभवों का पहाड़ होती है।अलग बात है कि इस पहाड़ पर कहीं-कहीं सुख के कुछ सुकोमल दूब भी उग जाते हैं। सुख की इन्हीं चंद दूबों की चाहत में उम्र बीत जाती है। ऐसा ही है वर्तमान समय जब हम महामारी से जूझते हुए, अपनों को खोते हुए भी साहस और धैर्य जीवन के प्रति रखते हुए आशा की किरण खोजने में लगे हुए हैं। कोविड का पहला मरीज जनवरी 2020 में केरल में पहचान में आया, फिर तो मार्च- 20 से लॉक डाउन की स्थिति और संक्रमितों की संख्या बढ़ने का सिलसिला, उसी दौरान महानगरों से कामगारों का अपने गांव घर जल्दी से पहुंचने की जो आपाधापी हुई वह महामारी से भी ज्यादा भयावह।



ऐसी भागदौड़ देश के विभाजन के समय रही होगी। उसके बाद का यह मंजर तो बहुत खौफनाक था। समय बीता, महामारी की रफ्तार सुस्त पड़ते ही लोगों की जिंदगी अपने पुराने ढर्रे की ओर अग्रसर ही हो रही थी, कामगार पुनः अपने काम की तलाश में शहरों की ओर वापस जा ही रहे थे, कुछ पहुंच भी गए थे कि तब तक दूसरी लहर का प्रचंड रूप से प्रकट हो जाना, प्रलय के समान ही हो गया। लोक और तंत्र दोनों मस्त थे और आत्ममुग्ध होकर अपनी पीठ थपथपा रहे थे कि मित्रों दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा सबसे कम हानि भारत में हुई। लेकिन दूसरी लहर ने बहुत ही भयावह स्थिति पैदा कर दी, सरकारी प्रबंध की कलई खोलकर रख दिया।
ऑक्सीजन के लिए लोग पागलों की तरह घूम रहे थे। मरीज बेड की तलाश में, अस्पताल में और परिजन दवाओं और ऑक्सीजन की तलाश में, बाजार में। लाशों का अंबार लग गया, मनमाने दाम पर लोग परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए मुंहमांगी कीमत चुकाने को तैयार ही नहीं हुए बल्कि अंतिम संस्कार किए। कुछ को तो, सरकारी अधिकारियों ने जेसीबी की सहायता से गंगा में उतराये शवों को गंगा किनारे दबा दिया, जिसका वीडियो सभी ने देखा। मरने के बाद उनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका। मुखाग्नि क्या दो मन लकड़ी की चिता भी नहीं मुअस्सर हुई। इतनी पीड़ा और बेबसी कभी नहीं दिखी।
हमारी पूरी मशीनरी उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में व्यस्त थी, जनता भी उसी में मस्त थी, मरीज और परिजन बेहाल थे, लेकिन मजबूर और बेबस थे। पांच राज्यों के विधान सभाओं ने भी आग में घी का काम किया। मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणी कि इन मौतों के पीछे "चुनाव आयोग अकेले जिम्मेदार है", उसके ऊपर हत्या का मुकदमा चलाया जा सकता है, काबिले गौर है। ठीक उसी राह पर योगी जी का हठ योग कि कावंड़ यात्रा आयोजित की जाएगी और बार बार उत्तराखंड के नव नियुक्त मुख्यमंत्री जी को भी कांवड़ के लिए तैयार करने का प्रयास किसी तुगलकी फरमान से कमतर नहीं रहा। ऐसे समय में जब अभी काशी दौरे पर आए प्रधानमंत्री ने तीसरी लहर के आगमन से लोगों को सचेत और ढिलाई न बरतने का साफ-साफ संदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष दिया। उन्होंने कहा कि देश आज ऐसे मुहाने पर खड़ा है जहां तीसरी लहर की आशंका लगातार जताई जा रही है।
कुल मिलाकर लोक की चिंता कम, तंत्र की ज्यादा। यह स्थिति बहुत भयावह होगी। भला हो उच्चतम न्यायालय का जिसने स्वत:संज्ञान लेकर कांवड़ यात्रा के संबंध में सरकार से अपनी स्थिति को 19 जुलाई तक स्पष्ट करने के साथ ही यह भी पीठ ने कह दिया कि यदि सरकार फैसला लेती है तो ठीक है नहीं तो हम आदेश देंगे। ऐसी कड़ी टिप्पणी न्यायालयों को क्यों करनी पड़ रही है, क्या यह कहीं न कहीं से सरकारों का जनता के हित व उनके कल्याण से अनदेखी तो नहीं है? आम जनमानस के स्वास्थ्य और जान माल का ख्याल नही है?
इस पर हमें विचार करना चाहिए। भारतीय संस्कृति की सम्यक विकास की अवधारणा रही है वह स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए मानव के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित करे। किसी समाज को सभ्य तभी कहा जा सकता है या कोई देश तभी प्रतिष्ठित कहलाता है,जब उसका सर्वांगीण विकास हो।हमें तो ऐसा लगता है कि अपनी अपनी आस्था को कायम रखते हुए घर पर अपना कार्य करते हुए, सुरक्षित रहते हुए अपने आराध्य का ध्यान पूजन करें। अपना कार्य करना भी इबादत ही है। शास्त्रों में कहा गया है कि कर्म ही पूजा है। सरकार को भी पूरा ध्यान टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवाओं को और सुदृढ़ बनाने पर अपना ध्यान पूरी मुस्तैदी से केंद्रित करते हुए, शिक्षा संस्थाओं के संचालन को सुगम और सफल बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिए।
                                 - एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग,
                                 श्री अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज वाराणसी।

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