नयनों की भाषा क्या जानें
ये तो बेदर्द जमाना हैं।
जो समझ सका ना
वाणी के भाव,
ये वो संगदिल जमाना हैं।
जख्मों की पीड़ा क्या जाने
ये तो खुदगर्ज जमाना हैं।
जो समझ सका ना प्रेम की भाषा
ये वो बेमुरव्वत जमाना हैं।
नयनों से बहती अश्रुधारा को क्या जाने
ये तो निर्मोही जमाना हैं।
जो समझ सका ना
सीता की पवित्रता को
ये वो धृष्ट जमाना हैं।
दया धर्म और सहानुभूति
को क्या जाने,
ये तो निर्दयी जमाना हैं।
जो समझ सका ना
वीरों की कुर्बानी को
ये वो बेरहम जमाना हैं।
रिश्ते-नाते,प्यार-वफा,
क्या जाने,
ये तो दगाबाज जमाना हैं।
जो समझ सका ना
मीरा के प्रेम को
ये वो संगदिल जमाना हैं।
सेवा भाव और समर्पण को
क्या जाने
ये तो बे अदब जमाना हैं ।
जो समझ सका ना
देश प्रेम को,
ये वो दारुण जमाना हैं।
पूजा चौधरी एडवोकेट
Very nice
ReplyDeleteGood👍👍
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