मेरठ।  डेढ़ साल से घरों में कैद बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डाल रहा कोरोना। घरों में कैद बच्चों की शारीरिक गतिविधियां थम सी गई हैं। इसका नतीजा बच्चों के रिएक्शन टाइम समेत दूसरे कई दुष्प्रभाव के तौर पर दिख रहा है। दिल्ली के अस्पतालों में इस तरह की समस्याओं से ग्रस्त बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ सोना कौशल भारतीय  ने बताया कि कोरोना कि शुरुआत के बाद से लगातार कभी न कभी लॉकडाउन लग जाता है। साथ ही संक्रमण के डर से माता-पिता बच्चों को बाहर नहीं भेजते हैं। अब बच्चों का सामाजिक दायरा खत्म हो गया है। स्कूल भी बंद हैं। वह अपने दोस्तों से भी नहीं मिल पाते। अलगाव, चिंता और डर की वजह से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है।
कोरोना का एक असर आपको अस्पतालों में मरीजों के रूप में दिख रहा है। वहीं, इसका एक दूसरा प्रभाव भी हुआ है, जो घरों में रह रहे बच्चों पर पड़ा है। पिछले करीब डेढ़ साल से बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार हो रहे हैं। 12 साल के वैभव के व्यवहार में बीते काफी समय से परिवर्तन आ रहा है। लॉकडाउन के कारण उसके माता-पिता  टेलीमेडिसन के माध्यम से इलाज करा रहे थे, लेकिन समस्या ठीक नहीं हुई। अब वह अपने बेटे वैभव को अस्पताल में लेकर आए हैं। जहां डॉक्टरों की जांच के बाद पता चला कि बच्चा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है। ऐसे में उसकी काउंसलिंग कि गई, जिसके बाद वह काफी हद तक ठीक हो गया है। यह मामला मेडिकल अस्पताल के बाल रोग विभाग में आया था। जहां डॉक्टरों ने बच्चे को काउंसलिंग के लिए भेजा था।
10 साल की निवेदिता को अब हर बात पर गुस्सा आने लगता है। पढ़ाई के समय में भी वह ध्यान नहीं केंद्रित कर पा रही है। साथ ही उसको लगातार सर दर्द और कम नींद कि समस्या भी हो रही थी। इसको देखते हुए उसके माता-पिता उसे एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां डॉक्टरों ने जांच में पाया कि शारीरिक गतिविधियां कम होने से बच्ची के स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ा है। इस कारण उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हुई है। बच्ची को कुछ दवाएं देने के साथ-साथ मनोरोग विशेषज्ञों से उसकी काउंसलिंग भी कराई गई।
डॉ. प्रदीप भारतीय ने बताया कि इस समय सबसे जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें। रोजाना उनके साथ कम से कम दो से तीन घंटे बिताएं। उनके साथ नियमित रूप से बातचीत करेंगे तो वह ठीक रहेंगे। इसके साथ ही बच्चों को फोन व लैपटॉप न दें। जिनता हो सके उन्हें बाहर पार्कों में खेलने कूदने दें। इस दौरान ध्यान रखे कि वह भीड़ में न जाएं। क्योंकि संक्रमण से भी बचना है और शरीर को शारीरिक रूप से स्वस्थ भी रखना है। 

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