शिवचरण चौहान

हमारे सौर मण्डल के ग्रहों में जल और जीवन होने की खोज वैज्ञानिक वर्षों से कर रहे हैं। ताजा अभियान मंगल ग्रह के लिए शुरू किया गया है। नासा ने अपना यान मंगल ग्रह को भेजा है। इस यान ने मंगल ग्रह की सतह पर उतारकर चित्र भेजने शुरू की है जिससे कई उम्मीदें जगी हैं। कुकुरमुत्ता सहित पहाड़ की अनेक तस्वीरें आई हैं। लगा है कि मंगल ग्रह में जल था। मंगल ग्रह की नदियां मंगल के भूमि के अंदर देखी गई हैं।



पृथ्वी के सबसे निकट ग्रहों में शुक्र ग्रह है, लेकिन वहां वायु है ही नहीं। शुक्र में बड़ी 'ताकत' ही नहीं है कि वह हवा को रोक सके। बिना ऑक्सीजन के जीवन सम्भव नहीं है। बुध ग्रह पर भी ऑक्सीजन लगभग नहीं है।
चन्द्रमा पर तो बिल्कुल ही ऑक्सीजन नहीं है। इनमें से किसी भी गृह पर जल भी नहीं है जो जीवन के लिए अत्यन्त जरूरी है। वृहस्पति का तो यह हाल है कि वहां शायद ही कोई खड़ा हो सके। वहां पृथ्वी की तुलना में इतना ज्यादा गुरुत्वाकर्षण है कि ईटों का मकान भी वहां गुरुत्वाकर्षण के कारण चूरा हो जाएगा।
मंगल ग्रह पर ही जीवन होने की सम्भावनाएं बनती हैं। मंगल पर थोड़ी वायु है और थोड़ी नमी यानी जल के भी प्रमाण मिले हैं। मंगल ग्रह पर भी पृथ्वी की तुलना में बहुत कम वायु रह गयी है। वहां यह अत्यन्त विरल है। मंगल पर बहुत थोड़ा सा जल ही बचा है। मंगल के रंग से इसे तुरंत ही पहचाना जा सकता है। सफेद-नीले तारों के बीच मंगल चमकीला नारंगी लगता है। मंगल ग्रह का रंग आग की लपटों जैसा है। लोग मंगल ग्रह से डरते थे। वे यह सोचते थे कि लाल तारा आकाश पर निकला है तो इसका अर्थ है धरती पर अशांति होगी, भूकंप आएंगे, विपदाएं आयेंगी। मंगल का ज्यादातर भाग उजला, लाल-सा है। इसकी पृष्ठभूमि में काले-काले से धब्बे दिखायी देते हैं। लोगों ने पहली बार जब मंगल को टेलीस्कोप से देखा था तो इन धब्बों को उन्होंने "समुद्र" कहा था।  
मंगल हर साल नहीं दिखायी देता। सूर्य की परिक्रमा की उसकी गति पृथ्वी से आधी ही है।सबसे दिलचस्प बात यह है कि मंगल का निकट से प्रेक्षण / निरीक्षण करते हुए स्वचालित स्टेशनों ने यहां सूख गयी नदियों के किनारे ) पाट देखे और उनके फोटो खींचे। क्या इसका अर्थ यह है कि कुछ समय पहले तक मंगल पर जल-धाराएं बहती थीं? हवाएं चलती थीं। तेज हवाएं   “ग्रह के सभी उभरे हुए भागों" से धूल उड़ा ले जाती हैं। दूसरे शब्दों में पहाड़ों से मैदानों में उड़ा ले जाती है। इसलिए पर्वतों पर कभी धूल नहीं होती, वे “साफ-सुथरे होते हैं। इसीलिए काले दीखते हैं। पर्वतों की तलहटी में मैदानों पर सदा धूल और रेत बिछी रहती है।
पानी के बिना किसी भी रूप में जीवन का अस्तित्व नहीं हो सकता। मंगल ग्रह पर थोड़ी सी नमी तो है ही। कुछ एक रूस और अमेरिकी स्वचालित स्टेशन मंगल तक गये थे। वे इस ग्रह की परिक्रमा करते हुए अपने उपकरणों से इसका अध्ययन करते रहे, चारों ओर से इसके फोटो खीचते रहे। और उन्होंने बहुत सी दिलचस्प बातों का पता लगाया।
मंगलवासी : लेखक एच.जी.वेल्स की कल्पना मंगल के ध्रुवों पर जो “सफेद टोपियां” नज़र आती है वे मुख्यतः “सूखी बर्फ से बनी है। जमी हुई कार्बन डाइआक्साइड को ही सूखी बर्फ कहते है। लेकिन इसके अलावा जमा हुआ जल-हिम-बन गया और वहां जम गया। मंगल  ग्रह पर तो बहुत ठंड है। लेकिन स्वचालित स्टेशनों ने उन "भट्ठियों का भी पता लगाया है, जो मिट्टी में जमे जल को पिघला सकती है। उन्हें मंगल पर ज्वालामुखी मिले हैं।अब तो ये शांत है, आग नहीं उगल रहे है, लेकिन इनके इर्द गिर्द ग्रह के गर्भ से ताप उठता है।  इसलिए जमी हुई मिट्टी पिघल सकती है। और यदि ज्वालामुखी का विस्फोट शुरू हो गया, उसमें से तपा हुआ लावा निकलने लगा तो चारों ओर सब कुछ गरम हो जायेगा। जल-धाराएं बहने लगेंगी। इस सब का अर्थ यह है कि प्राणी यहाँ हवा मे से भी और मिट्टी में से भी जल पा सकते हैं।
इसलिए वैज्ञानिकों को लगता है कि मंगल ग्रह पर कोई न कोई होना चाहिए। लेकिन कौन?बेशक, हम वहां मनुष्य जैसे प्राणियों के होने की उम्मीद नहीं कर सकते। लेकिन वनस्पतियां और छोटे-छोटे जीव तो हो ही सकते हैं। मंगल के पर्वतों और मैदानों के ऊपर उड़ते हुए स्वचालित स्टेशनों ने कुछ रंगीन फोटो खींचे। इनमें कुछ क्रेटरों का तला हरा-हरा है। शायद यही मंगल पर जीवन है? शायद यह मंगल की किन्ही आश्चर्यजनक वनस्पतियों की हरियाली है। सन 1976 में दो अमरीकी स्वचालित स्टेशन'वाइकिंग-वन' और वाइकिंग-2 मंगल ग्रह पर उतरे। उन्हें इस प्रश्न का निश्चित उत्तर पाना था कि मंगल ग्रह पर जीवन है कि नहीं।'
वाइकिंग  ने अपने धातु के सिर इधर-उधर घुमाये और आस-पास के स्थल के बहुत अच्छे फोटो रेडियो तरंगों से पृथ्वी पर भेजे। इन में हमने अनेक रेतीले मैदान भी देखे, जिनमें रेत में अध दबे पत्थर बिखरे हुए थे। फोटो पर जीवन के कोई चिन्ह नज़र नहीं आते थे। तब 'वाइकिंगों' ने अपने आस-पास थोड़ी मिट्टी खोदी, उसे निगल” गये और बड़ी देर तक अपने  अंदर उसका अध्ययन करते रहे, यह ढूंढते रहे कि कहीं उसमें कोई सूक्ष्म जीवाणु ही मिल जायें।
चीन ने भी मंगल ग्रह पर अपना उपग्रह भेजा है पर चीन अपनी सारी सूचनाएं को गोपनीय रखता है। इसलिए चीन जब तक बताना नहीं चाहेगा वह मंगल ग्रह के बारे में अपनी खोज को सार्वजनिक नहीं करेगा। भारत भी मंगल ग्रह पर अपना उपग्रह भेजने की तैयारी कर रहा है किंतु अमेरिका की संस्था नासा ने बहुत काम कर लिया है। आज मंगल ग्रह के अनेक रहस्यों का पता चल गया है किंतु मंगल ग्रह में जीवन है यह प्रमाणित नहीं हो सका है। हालांकि अभियान अभी जारी है। मंगल ग्रह में अगर जीवन हुआ अगर वहां बसना संभव हुआ तो ही कुछ किया जा सकता है वरना सारा कुछ एक खेल साबित होगा। यह संभावना बहुत कम है कि मंगल मे जीवन है। अभी तो खोज जारी है आगे क्या होता है पता चलेगा।

- लेखक स्वतंत्र विचारक और वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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