खोता बचपन, देश हमारा।
जारी पर उपदेश तुम्हारा।।
बोझा ढोते गुल भी देखे।
निर्धनता ने, हमको मारा।।

ऐसी आंखें नजर न आएं।
जिनमें जब्त हो दर्द हमारा।।
कांधों पर भी भारी बस्ते।
क्यों निजाम है इतना प्यारा।।



कागज पर सारी सुविधाएं।
मगर अस्ल है उल्टा सारा।।
बात करो जब भी बच्चों की।
चढ़ जाता शासन का पारा।।

बच्चे सुख में धनवानों के।
चमके उनका भाग्य सितारा।।
भीख मांगता निर्धन बचपन।
चुप क्यों संविधान हमारा।।

- बृंदावन राय सरल, सागर (मध्य प्रदेश)

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