मेरठ। स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के सम्राट अशोक सुभारती स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज में आषाढ़ी पूर्णिमा के अवसर पर धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ बौद्ध विद्वान भंते डा. चन्द्रकीर्ति ने मंगलाचरण वंदना प्रस्तुत करके एवं तथागत बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलन करने के साथ किया।
सुभारती विश्वविद्यालय के कुलपति डा.वी.पी. सिंह ने सभी को आषाढ़ी पूर्णिमा एवं धम्मचक्र दिवस की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि तथागत की शिक्षाओं में मानवता के संरक्षण को बल दिया गया है और ज्ञान के माध्यम से जीवन को सत्य के मार्ग पर व्यतीत करने की कला सिखाई गई है। उन्होंने कहा कि तथागत बुद्ध की शिक्षाओं को आत्मसात करते हुए सुभारती विश्वविद्यालय पूरी मुस्तैदी के साथ भारत एवं विश्व भर में पल्लवित कर रहा है एवं उन्नति के संदेश को अपने छात्र छात्राओं में रोपित कर संस्कृति एवं ज्ञान से भरपूर देश के लिए युवा पीढी़ का निर्माण कर रहा है।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा.शल्या राज ने कहा कि धम्मचक्र प्रवर्तन का दिन समाज में ज्ञान का प्रचार प्रसार करते हुए मानव कल्याण का संदेश देने का दिन है। इसलिये हमें समाज में एकता, प्रेम करूणा लाने के साथ भारत को विकास की गति पर ले जाकर विश्व गुरू बनाने हेतु हर स्तर से प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि सुभारती विश्वविद्यालय शिक्षा, सेवा, संस्कार एवं राष्ट्रीयता की भावना के साथ बौद्ध धर्म के संस्कारों को मानव कल्याण की दिशा में लगा रहा है।
सम्राट अशोक सुभारती स्कूल ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज के सलाहकार डा. हिरो हितो ने बताया कि आज ही के दिन तथागत बुद्ध ने बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद अपना पहला ज्ञान संसार को दिया। उन्होंने कहा कि बुद्ध के सम्यक विचार विश्व को एक परिवार के रूप में उन्नति के साथ स्थापित करने में सहायक है और बुद्ध के मार्ग पर चलने से ही हर प्रकार की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म भारत से उदय होकर विश्व में आज शीर्ष पर है तथा भारतीय संस्कृति का पूर्ण समावेश बुद्ध की शिक्षाओें में है। लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पूर्व सारनाथ में दिए गए प्रथम धम्मचक्र आज भी गतिमान है। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म मे ऐसी मान्यता है कि धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र पाठ मात्र से जीवन के सारे कष्टों का निवारण होता है तथा शान्ति की प्राप्ति होती है।
बौद्ध विद्वान भंते डा. चन्द्रकीर्ति ने कहा कि धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस अषाढ़ी पूर्णिमा से लेकर अश्विनी पूर्णिमा तक तीन माह का कार्यकाल वर्षावास का कार्यकाल कहलाता है जिसमें प्रत्येक भिक्षु तीन माह तक एक ही स्थान पर रहकर अपना समय व्यतीत करते है एवं ज्ञान का संपादन करते है। इस कार्यकाल में दान, शील एवं समाधि का अभ्यास कर अपने चित्त को शुद्ध कर निर्वाण प्राप्ती के लिए भिक्षु, शिक्षुणी एवं उपासक, उपासिकाएं प्रत्यनशील रहते है। यह कार्यकाल पुण्य अर्जित करने का कार्यकाल माना जाता है।
इस अवसर पर डा. नीलिमा चौहान, डा. हरीश कुमार, डा. सीमा शर्मा, डा. रागिनी श्रीवास्तव, पल्लवी त्यागी, समीर सिंह आदि उपस्थित रहे।

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