यथार्थ और स्वप्न पर वेबिनार का आयोजन 

 

 मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय  द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव  मंथन सेमिनार श्रृंखला के अंतर्गत आजादी के 75 वर्ष और आगामी 25 वर्ष  यथार्थ और स्वप्न. संदर्भ सांस्कृतिक पक्ष विषय मंथन सेमिनार आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की माव प्रतिकुलपति प्रो. वाई विमला ने की। 
मेरठ मूल की निवासी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति लब्ध और अनेक वेद, पुराण, भगवतगीता सहित महत्वपूर्ण ग्रंथों की अनुवादक कार्यक्रम की विशिष्ट वक्ता डा मृदुल कीर्ति, वरिष्ठ साहित्यकार ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि भाषा मुखरित संस्कृति है।संस्कृति भाषा और संस्कार की कहानी है। संस्कृति हमारे जीवन का प्रबंधन है। संस्कृति समाज का अदृश्य संविधान है।योग के माध्यम से भारतीय संस्कृति वैश्विक स्तर पर विशिष्ट पहचान रखती है। योग के माध्यम से भारतीय भाषा का प्रसार व्यापक स्तर पर हो रहा है। लगभग सात हजार मंत्रों का काव्यानुवाद कर चुकी मृदुल कीर्ति ने आगामी वर्षों मे सकारात्मक प्रभाव की चर्चा की।। डॉ मृदुल कीर्ति ने कहा कि प्रकृति और संस्कृति दोनों को बचाए रखने की जरूरत है।
संस्कृति स्वयं नहीं जन्मी है संस्कृति किसी भाषा से जन्मी है। ऐसे में  किसी भाषा तत्व पर जाना चाहिए भाषा जो बोल कर व्यक्त की जाती है भाषा स्वयं में ही मुखरित एक संस्कृति है जो संस्कृति के अव्यक्त रूप को व्यक्त करती है और वही आगामी पीढ़ी तक इसे ले जाती है। भाषा में संस्कृति सभ्यता और संस्कार के बीज समाहित होते हैं। संस्कृति हमारे जीवन का प्रबंधन है जो सुसंस्कृत करे वह संस्कृति है। संस्कृति के 6 लक्षण है धर्म, दर्शन, इतिहास, भाषा, वेशभूषा और कला। इस तरह संस्कृति समाज का अदृश्य संविधान है। जो अंतर को अदृश्य रूप से सचेत रखता है।यथार्थ और स्वप्न के दो कालखंड हैं।  हमारी संस्कृति हमें प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर ले जाती है। वेदए सैकड़ों उपनिषद जो अंतस को भी जगाए रखे।
 योग ने विश्व को भारत से व्यापक रूप में जोड़ा। योग के माध्यम से भी हमारी भाषाएं हिंदी और संस्कृत लोगों के बीच पहुंच रही हैं। अब धीरे.धीरे विश्व एक होता जा रहा है। उन्होंने भारत सरकार के माध्यम से दुनिया में पहुंच रहे महत्वपूर्ण साहित्य की भी चर्चा की। उन्होंने बच्चों को संस्कारित करने पर जोर दिया और कहा कि बच्चों के अंतस में आप क्या देते हैंए यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि पतंजलि योग सूत्र अनुशासन सिखाता है जो कि दुनिया में आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। शारीरिकण् मानसिक और आंतरिक अनुशासन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि चित्र वृत्ति का निरोध का संदर्भ संयमन से है। अनुशासित होने पर आप अपने रूप को देख सकते हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रतिकुलपति प्रो. वाईव विमला ने कहा कि भारतीय संस्कृति बहुआयामी है। नए समय में संस्कृति में नया कलेवर जुड़ता है। परिवर्तन में पुराना समय किसी न किसी रूप में जुड़ जाता है।आगामी पच्चीस साल में  आशातीत सफलताएं मिलने वाली है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का निरंतर विकास होगा जो आज का यथार्थ है वह हमें पूरी तरह दिखाई नहीं देता यह देखने की आवश्यकता है कि हमारी संस्कृति ने विश्व में किस तरह अमिट छाप छोड़ी है । भारतीय संस्कृति के केंद्र में दर्शन है और दर्शन सदैव आशावाद की बात करता है। वसुधैव कुटुंब की बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति समृद्धशाली है।वैश्विक स्तर पर यह सर्वविदित है। धर्म का उदय मानवता के उदय और विकास के लिए होता है दूसरों पर कुठाराघात करने के लिए नहीं। हमारी संस्कृति पशु.पक्षीए प्रकृति सबको साथ लेकर चलती है।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रो. मृदुल गुप्ता, प्रो बीरपाल सिंह, प्रो. एस एस गौरव, प्रोफेसर एके चौबे, प्रो. शिवराज सिंह प्रो आराधना, डॉ विवेक त्यागी, डा. पूनम भारद्वाज, डॉ अंजू डॉन,डॉक्टर प्रवीण कटारिया एवं विश्वविद्यालय अधिकारी, शिक्षक, एवं संबद्ध महाविद्यालय के प्राचार्य, शिक्षक, छात्र.छात्राओं ने प्रतिभागिता की।

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