- डा. ओपी चौधरी

वन को हम फॉरेस्ट से समझें तो लैटिन शब्द के फोरिस से निर्मित,जिसका अर्थ है गांव के सीमा या चारदीवारी से बाहर की समस्त भूमि, जिस पर खेती न की गई हो तथा जो निर्जन हो। अब वन से तात्पर्य है कि जिसका उपयोग वानिकी के उद्देश्य से किया गया हो।




 वन किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा है और प्रकृति की मनोरम विशिष्टता है।वनों के महत्व को दर्शाते हुए कहा जाता है, " वन से जल, जल से अन्न, अन्न से जीवन" इसी तर्ज पर अब हम कहने लग गए हैं कि जल ही जीवन है। वन को लोगबाग हरा सोना भी कहते हैं। यह हमारे जीवन को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। हमें एक ओर  इनसे फल, इमारती लकड़ी, पशुओं का चारा, पक्षियों का भोजन आदि अनेक चीजें प्राप्त होती हैं, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण को स्वच्छ, समृद्ध, मिट्टी के कटाव को रोकने व उसमें नमी बनाए रखने का कार्य करते हैं। ऑक्सीजन को बहुतायत मात्रा में प्रदान करने वाले ये वन हमारे जीवन के अविभाज्य अंग सरीखे हैं। कोरोना महामारी में ऑक्सीजन के लिए जो आपाधापी मची थी, उससे हमें सबक लेकर अधिक से अधिक वृक्षारोपण और उनका संरक्षण करना चाहिए।यह हमारा सामाजिक और नैतिक दायित्व है।
इस समय सरकारी वन महोत्सव चल रहा है, जिसे प्रदेश सरकारें आयोजित करती हैं। पौधारोपण अभियान के साथ ही लोगों से आग्रह किया गया कि "मेरा पेड़ –मेरा साथी" से संबंधित फोटो व वीडियो अपलोड करें। साथ ही प्रदेश में इस सीजन में 30 करोड़ वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा गया है। इस तरह पांच वर्षों में सरकार ने कुल 95.95 करोड़ पौधे लगाए। उत्तर प्रदेश सरकार के वन मंत्री दारा सिंह चौहान ने वन विभाग के मुख्यालय में पत्रकार वार्ता में बताया है कि मुख्यमंत्री ने 100 करोड़वां हरिशंकरी का पौधा रोपित किया है। इससे स्पष्ट है कि इस सरकार में 100 करोड़ पौधे केवल सरकारी महकमों ने लगाए।
हम जैसे लाखों लोगों की जो अपने से लगा रहे हैं, उनकी गिनती नहीं है और पूर्ववर्ती सरकारों ने भी ऐसे ही योजना बद्ध तरीके से वृक्षारोपण अभियान चलाया था, लेकिन सरकार द्वारा रोपित इसमें से कितने पौधे बचे हैं, इसका अभी तक विवरण प्राप्त नहीं हुआ है। इस ओर ध्यान देकर हम कम खर्च में अधिक पौधो को सुरक्षित रख सकते हैं। मुझे भी पौधारोपण का शौक बचपन से ही है ( 1971 में बांग्ला देश बनने की खुशी में अपने अग्रज स्मृतिशेष डा. घनश्याम चौधरी की प्रेरणा से पहला पेड़ आम का लगाया था) तबसे अभी तक विराम नहीं लिया है,अब यह मेरे जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा हो गया है। लेकिन एक पेड़ को लगाकर उसे बड़ा करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। बहुत सारा वक्त लगता है, फिर वह पौधा पेड़ बनकर समस्त प्राणियों को शुद्ध ऑक्सीजन, पुष्प व फल प्रदान करता है। एक पेड़ अपने जीवनकाल में लाखों लीटर ऑक्सीजन के साथ आजीविका के दर्जनों साधन, जहर सोखने की क्षमता, ठंडक, छाया, औषधि, फल-फूल, ईंधन, इमरती लकड़ी और जीवन भर सकून देने के साथ ही हमारे मन को प्रफुल्लित करता है।
ऐसी ही अभिव्यक्ति, हमारे मित्र और प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय हरदोई एमपी चौधरी, जो स्वयं वृक्षारोपण का शौक रखते हैं, कहते हैं कि अपने द्वारा रोपे गए पेड़ में जब पहला फल लगता है तो उसे देखकर उतनी ही खुशी होती है, जितनी पहली बार तनख्वाह मिलने पर होती है। पेड़ लगाना अच्छा कार्य है, उससे भी महत्वपूर्ण उसे बचाना है, उसकी परवरिश है। अन्यथा एक पौधे की हत्या उसके बाल्यकाल में ही कर देना है, यदि हमने उसे लगाकर केवल छोड़ दिया। हमने अपने आस- पास जो देखा है वह पौधों की बाल हत्या ही ज्यादा हो रही है। किसान या कोई भी व्यक्ति प्रति वर्ष 2–4 पौधों को ही लगाने और उसे सुरक्षित रखने में पसीना छोड़ देता है, छुट्टा जानवरों व घड़रोज की बाढ़ सी आ गई है, देखते ही देखते वे इन पौधों को नष्ट कर देते हैं। फिर जिसे लोग लगाकर फोटो/वीडियो बनाकर चले जाते हैं, फिर उनका क्या हश्र होता होगा?
कभी सोचा या देखा? इसलिए जितने बड़े पैमाने पर सरकार वृक्षारोपण करती है, उतने पौधों को जिंदा और सुरक्षित रख पाना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है।बावजूद इसके वन महोत्सव कार्य एक बहुत ही सराहनीय कदम है। पर्यावरण को स्वस्थ व स्वच्छ बनाने का। इसे जनमानस से जोड़कर एक जन आंदोलन का रूप देना होगा। लोगों को उनके सामाजिक दायित्व का एहसास कराना होगा।तभी सही मायने में वन महोत्सव की सरकार की योजना परवान चढ़ेगी। सरकार के कुछ अधिकारी गण पर्यावरण को लेकर बहुत संवेदनशील हैं। ऐसे ही संवेदनशील व्यक्तित्व हैं सियाराम वर्मा जी, एआरटीओ, प्रयागराज,
जिन्होंने न केवल अपने कार्यालय को ही हरा-भरा कर दिया अपितु अपने गृह जनपद में भी अभियान चलाकर वृक्षारोपण करके प्रकृति की गोद को संजोने का कार्य कर रहे हैं।
कमोवेश यही हाल हम शिक्षकों का भी है। हमें वनों के प्रति ज्यादा सजग व संवेदनशील होने की जरूरत है, क्योंकि वन ऑक्सीजन के संचित कोष स्थल हैं जो कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं तथा पर्यावरण में विविध गैसों का संतुलन बनाए रखते हैं। आजकल मियावकी तकनीक से हम कम क्षेत्रफल में अधिक पेड़ लगा सकते हैं। इस पद्धति में पौधों को एक दूसरे से बहुत कम दूरी पर लगाया जाता है, जिससे पौधे अगल बगल की अपेक्षा केवल ऊपर की ओर सूर्य की रोशनी प्राप्त कर बढ़ते हैं। मानव के लिए वन संपदा अमृत के समान है। इसका संरक्षण व संवर्द्धन हम सभी का सामाजिक और नैतिक दायित्व है।

- एसोसिएट प्रोफेसर, श्री अग्रसेन कन्या पीजी कॉलेज वाराणसी।

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