काशी और स्वच्छ, अविरल, निर्मल गंगा

- शिवचरण चौहान


कानपुर।
क्या काशी में कभी गंगा स्वच्छ और निर्मल, अविरल हो पाएगी? क्या अरबों रुपए खर्च करने के बाद गंगा नहाने और आचमन लायक हो पाएगी। यह ज्वलंत सवाल काशी और पूरे देश के लोग जानना चाहते हैं। काशी यानी वाराणसी यानी बनारस प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र है और अब तक अरबों रुपए गंगा सफाई के नाम पर खर्च किए जा चुके हैं। पिछले 2 हफ्ते पहले जो रिपोर्ट आई है उसमें गंगा का पानी आचमन लायक नहीं पाया गया। पानी में हरी काई हरा शैवाल जमा हुआ है।



आस्था, विश्वास और परंपरा का केंद्र बिंदु 'गंगा'  हैं। विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी को गंगा के कारण ही निरंतर मोहक, श्रद्धा एवं आदर की दृष्टि से देखा जाता है। यह ऐसी नगरी है, जहां गंगा की धारा उत्तर वाहिनी है। काशी वैष्णव, शैव, बौद्ध, जैन एवं अन्य सम्प्रदायों के लोगों का महत्वपूर्ण स्थान है। काशी की महिमा का वर्णन पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। गंगा और काशी के तादात्य से ही काशी विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। अनेक प्राचीन संस्कृतियां अतीत के गर्त में समा गयीं लेकिन काशी अपनी हजारोंवर्षों को संस्कृति को समेटे आज भी अविछिन रूप से मौजूद हैं। न जाने कितनी पीढियों ने काशी में गंगा के किनारे संस्कृतियों का सृजन किया है।
गंगा के किनारे 15 से 20वीं शताब्दी के बने घाटों की कतार है। घाटों के शीर्ष पर कही मंदिर के पट तो कहीं वेदों का सस्वर पाठ सुनाई पड़ता है। कहीं मुल्ला की अजान तो कहीं भक्ति संगीत सुनाई पड़ता है। मंदिरों, मस्जिदों, राजा-महाराजाओं के महलों, नये-पुराने मकानों की कतारें काशी के अतीत का बखान स्वयं ही करती है। पंचगंगा घाट की सीढ़ियों पर कबीर को रामानंद से दीक्षा मिली। असी घाट पर तुलसी ने मानस जैसी अमर कृति  की रचना की। दशाश्वमेध घाट पर दश अश्वमेध यज्ञ कराये। आदि शंकराचार्य ने इन्हीं घाटों की लंबी-चौडी बड़ी सीढ़ियों पर अद्वैतवाद का मनन किया। बल्लभाचार्य ने गंगा के तट पर तपस्या की और वल्लभ सम्प्रदाय का विस्तार किया। महाप्रभु चैतन्य की तपस्या ही पूरी यहीं हुई, जब तक उन्होंने काशी में गंगा तट के दर्शन नहीं किये।
 भारतेंदु हरिश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद ने इन्हीं सीढियों से उतरकर गंगा स्नान किया। रामानंद पंचगंगा घाट की सीढ़ियों से उतरकर गंगा स्नान करते थे। काशी में गंगा  तीर्थ आदि काल से लोगों के दिलों में बसा है।
लेकिन आज न वैसे घाट हैं और न सीढ़ियां। चारों तरफ गंदगी है। सीढ़ियों में मल त्याग  लघुशंका करते लोग प्रायः दिखायी पड़ते हैं। यह गंदगी बाहर से आये तीर्थयात्री नहीं बल्कि काशी के लोग स्वयं करते हैं। गंगा आज से नहीं लगातार दशको से मैली ही  है।
जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने और वह वाराणसी से चुनाव लड़े तब से गंगा की सफाई के लिए अनेक कार्य हुए हैं सड़के बनी है तमाम भूमि भवन अधिग्रहित किए गए और अनेक कार्य हुए गंगा में स्ट्रीमर चलाने की योजना भी शुरू की गई थी किंतु गंगाजल की हालत वैसी की वैसी ही है। ताजा रिपोर्ट बताती है कि गंगा का पानी आचमन लायक भी नहीं है। अभी तो बरसात है गंदा पानी गंगा से बह जाएगा और कुछ दिन गंगा साफ रहेंगी किंतु इसके बाद फिर वही हालत हो जाएगी।इसकी संभावना बहुत है।
ऐसा नहीं है कि हरिद्वार से लेकर गंगासागर तक गंगा की सफाई के लिए अभियान ना चलाए गए हो। अरबों रुपए में खर्च किया गया हो पर गंगा मैली की मैली ही रही। उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्व. डा. संपूर्णानंद ने बसंत पंचमी के दिन काशी के घाटों के पुनरुद्धार के लिए 500 लाख रुपये दिये थे और तभी से गंगा सफाई की और लोगों का ध्यान बराबर जाता रहा। पूर्व
मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने 1952 में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए कहा था गंगा अमृत की धारा" है। इसमें जहर घोलने से रोको। 1982 तक आते-आते काशी में गंगा जल पूरी तरा से प्रदूषित हो गया। वाराणसी में डीजल रेल कारखाना तथा वाराणसी नगर निगम अपना-अपना गंदा पानी बिना किसी शोधन के गंगा में रोज छोड़ते रहे। असी नाला जिससे नगर निगम के लंका क्षेत्र का गंदा जल एवं डीजल रेल कारखाने का सारा गंदा पानी गंगा में मिलता रहा, इसे देखते हुए वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की व्यवस्था की गयी। इस प्रकार"ट्रीटमेंट" करके पानी को किसी नदी में छोडे जाने से प्रदूषण की समस्या कुछ हद तक दूर हो सकती है। लेकिन यह सिस्टम आये दिन खराव
रहता है और ओवर फ्लो  से सारा गंदा पानी गंगा में प्रवाहित हो रहा है। जल की कम से जल में रेती की मात्रा बढ़ गयी है। जिसमें गंगा का बहाव ही बदल जायेगा और वाराणसी के घाटों की उद्भूत छटा पर आंच आयेगी। 5 जनवरी, 1985 को  तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने पहली महत्वपूर्ण घोषणा कर "केंद्रीय गंगा अधिकरण" का गठन किया  था। दस सदस्यों को इस प्राधिकरण ने स्वयं अध्यक्ष राजीव गांधी थे। सफाई अभियान के दूसरे चरण में ही 14 जून, 1986 राजीव गांधी ने काशी में गंगा सफाई योजना पर कुल 43 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा इसमें घाटों की मरम्मत के लिए 20 करोड़ 80 लाख और शहरी गलियों के सुधार, कहा-कर्कट के निस्तारण और आधुनिकतम सुलभ शौचालयों के निर्माण पर बड़े पैमाने पर कार्य करने की योजना पर 7 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था। जल निगम के संयंत्र इस कार्य के लिए बुरी तरह अनुपयुक्त रहे ।
 संकट मोचन फाउंडेशन और राजनीतिज्ञों के दबाव में केंद्रीय गंगा प्राधिकरण (जी.ए.पी.) के फेज-1 का कार्य अप्रैल, 1993 में बंद कर दिया गया । उजर प्रदेश जल निगम के तत्कालीन प्रभारी एन.सी. गुप्ता ने अपनी टीम की सहायता से दूसरा प्रस्ताव बनाया और नाम दिया जी.ए.पी.फेज-दो। पर इससे भी गंगा साफ नहीं हुई। तब से लगातार प्रयास हो रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आप नरेंद्र मोदी बनारस में गंगा सफाई के लिए अरबों रुपए खर्च कर चुके हैं किंतु गंगा स्वच्छ और निर्मल नहीं हो सकीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में उमा भारती को गंगा सफाई का काम दिया गया था लालफीताशाही के चलते वह भी कुछ नहीं कर पाई।
आज गोमुख से लेकर गंगासागर तक गंगा गंदी है। हरिद्वार फर्रुखाबाद कानपुर मैं गंगा में गंदे नाले प्रवाहित हो रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कानपुर में नाले टेप करवाए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लगातार निरीक्षण किए किंतु गंदा नाले गंगा में गिरना रोक नहीं पाए।
कुछ लोगों का कहना है कि गंगा बिना जन सहयोग के साफ नहीं होगी। सरकार को चाहिए की गंगा के समानांतर गंगा जैसे बड़े बड़े नाले बनवाए जिसने शहरों नगरों और महानगरों का गंगाजल सीवर उसी में गिरे और उसमे  ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर गंगाजल को खेतों की सिंचाई के योग्य बनाया जाए और नहरे बनाकर पानी खेतों तक पहुंचाया जाए। अब तक जितना धन गंगा सफाई अभियान में लग चुका है इतने में तो नाला बन गए होते ।
गंगा सफाई अभियान के लिए गंगा के किनारे रहने वाले लोगों में वॉलिंटियर बना ली जानी चाहिए जो गंगा सफाई पर निरंतर नजर रखें। गंगा अभियान में जितनी स्वयंसेवी संस्थाएं लगी हैं सब की निगरानी रखी जानी चाहिए। वरना अरबों रुपए खर्च होता रहेगा और गंगा गंदी से गंदी होती चली जाएगी। गंगा सफाई अभियान के लिए यह बहुत जरूरी है की गंगा की सहायक नदियों की भी सफाई कराई जाए तभी तो गंगा स्वच्छ हो पाएगी। वरना एक दिन गंगा पूरी तरह गंदा नाला बन कर रह जाएगी।


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