शिवचरण चौहान



विश्व भर के पर्यावरण और इंसानों के लिए यह बुरी खबर है कि मधुमक्खियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि मधुमक्खियों के बिना पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन है। वर्षों पहले प्रख्‍यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्‍टीन ने कहा था कि यदि पृथ्‍वी पर मधुमक्खियां नहीं रहेंगी तो सिर्फ चार साल में ही सारी सृष्टि खत्‍म हो जाएगी। आइंस्‍टीन का कथन आज भी उतना ही प्रासंगिक है। मधुमक्खियां नहीं रहीं तो हमारा पर्यावरण नष्ट हो जाएगा। तब ना तो फसलों और फूलों का परागण होगा और ना मनुष्य का जीवन होगा।



कीट वैज्ञानिकों के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से मधुमक्खियों के विलुप्त होने की खबरें आ रही हैं। यह चिंतनीय विषय है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जो कारण पता चला है वह और भी शोचनीय है। गांव गांव लगे मोबाइल टावरों के बढ़ते रेडिएशन के कारण मधुमक्खियां तेजी से मर रही हैं। पिछले 6 साल में साठ प्रतिशत मधुमक्खियां विलुप्त हो गई हैं। मधुमक्खियां जब अपने छत्ते से पराग इकट्ठा करने के लिए फूलों की ओर जाती हैं तो उसी दौरान मोबाइल फोन के टावरों की तरंगें उनके शरीर से आरपार हो जाती हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है मोबाइल फोन के टावरों के रेडिएशन से गौरैया के अंडे से बच्चे नहीं निकलते। फूल नहीं खिलते। रेडियो तरंगे इतनी घातक होती हैं कि कोमल पक्षियों और फूलों को नुकसान पहुंचाती हैं। जब मधुमक्खियां ही नहीं होंगी तो शहद कहां से आएगा। दुनिया में मधुमक्खियों की 7 जातियां और 44  प्रजातियां पाई जाती हैं । शहद बनाने का काम सिर्फ सात जातियों की मधुमक्खियां करती हैं जिनमें चार भारत में पाई जाती हैं। भारत सरकार ने मधुमक्खी को संकट मुक्त प्रजाति  में रखा है किंतु अब यह संकटग्रस्त जाति में आ गई है। और अब मधुमक्खियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा  रहा है।
मधुमक्खी कीट वर्ग का प्राणी है। डंक सिर्फ कमेरी मधुमक्खी जो फूलों से पराग इकट्ठा करती है उसी के पास होता है। कुछ मधुमक्खियों के डंक में इतना विष होता है कि करीब 1 हजार डंक मारने पर आदमी की मौत भी हो सकती है। डंक मारने के बाद मधुमक्खी मर जाती है।
प्राचीन काल में युद्ध में मधुमक्खियां छोड़ी जाती थीं और शत्रु सेना मधुमक्खियों के हमले से भाग जाती थी। हमारे पुराणों में भी मधुमक्खी सेना का उल्लेख आया है। मधुमक्खियां नृत्य करके अपने साथियों की पहचान करती हैं। हर छत्ते की मधुमक्खी अलग तरह का नृत्य करती है। मधुमक्खी एपिस जाति का कीट हैं। मधुमक्खियां लाखों वर्षों से इस धरती पर हैं। मधुमक्खियां मोम से अपना घोंसला या छत्ता बनाती हैं। आर्थो पोंडा कुल की कीट होने के कारण यह झुंड में रहती हैं। एक झुंड में एक रानी मधुमक्खी करीब डेढ़ सौ या 200 नर मधुमक्खी और 60 हजार तक कमेरी मधुमक्खियां होती हैं।
सबसे छोटी मधुमक्खी को भारत में भुनगा  या डमभर या पतूस कहते हैं। यह मधुमक्खी बहुत छोटी होती है काटती नहीं है और किसी पेड़ की खोखल में अपने छत्ते बनाती हैं। यह मधुमक्खी जड़ी बूटियों के फूलों से पराग इकट्ठा करती हैं और शहद बनाती हैं। इस कारण इसका शहद खट्टा मिट्ठा होता है। आयुर्वेद की दवाओं के साथ खाने में इसका शहद बहुत उपयोगी पाया गया है। वैद्य इसी का शहद प्रयोग करने की बात करते हैं।
दूसरी तरह की मधुमक्खी भारत में भंवरा मधुमक्खी कही जाती है। इसे कहीं मोम मधुमक्खी तो कहीं पर कैरा मधुमक्खी बोलते हैं। भंवर मधुमक्खी पाली नहीं जाती। यह खतरनाक मधुमक्खी बड़े आकार की होती है उसके शरीर में बाघ की तरह रंग और धारियां होती हैं। जंगलों में बहुत ऊंचे पेड़ों महानगरों में बहुत ऊंची इमारतों में यह ट्रक के टायर जैसा गोल बड़ा सा छत्ता लटकाती है।
 तीसरी मधुमक्खी पोतिंगा या छोटी मधुमक्खी कहते हैं। इसे एसिप फ्लोरिया कहते हैं।  यह छोटी मधुमक्खी पेड़ या किसी झाड़ी के डाल में अपना छत्ता लटकाती है। भारत में इसे ही पाला जाता है। चौथे तरह की मधुमक्खी खैरा या मौन कहलाती है। कहीं कहीं इसे सत कोचवा भी कहा जाता है। यह पेड़ के खोखल में या किसी खंडहर  की दीवार में एक के बाद एक सात छत्ते लगाती है। साल भर में एक छत्ते से 15 किलोग्राम तक शहद प्राप्त होता है।
पिछले करीब छह सालों में मधुमक्खियों की संख्या में यकायक 60 प्रतिशत तक कमी हो जाने के कारण शहद उत्पादन विश्व भर में एक चौथाई रह गया है। जंगल कटने और मोबाइल टावरों के रेडिएशन से मधुमक्खियां विलुप्त हो  रही हैं, मर रही हैं इन्हें बचाना होगा। दुनिया भर में हजारों कंपनियां शहद का उत्पादन और विक्रय करती हैं।
मधुमक्खियां करोड़ों फूलों का रस एकत्र करती हैं और एक से दूसरे पौधे पर परागण करती हैं जिनसे हमारी फसलें और हमारे फलों में गुणवत्ता आती है पौधों फूलों में परागण होता है और उनका वंश बढ़ता है। जब मधुमक्खियां ही नहीं रहेंगी तो पर्यावरण कहां से बचेगा और मनुष्य का जीवन भयंकर संकट में पड़ जाएगा। इसलिए बहुत जल्द दुनिया भर के वैज्ञानिकों को मधुमक्खियों को बचाने के लिए कोई ठोस उपाय अपनाने होंगे। तभी हमारा पर्यावरण हमारी प्रकृति और मनुष्य का जीवन सही सलामत रह सकेगा।
(लेखक स्वतंत्र लेखक और कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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