डा. ओपी चौधरी
8–9 बैलों के साथ ही गाय और भैंस कुल मिलाकर 15 से 20 या उससे भी अधिक जानवर हमारे यहां हुआ करते थे, जो बांस के खूंटे में पगहे (सन या सुतली से बनी रस्सी) से बंधे रहते थे। उस समय लोहे वाली जंजीर अपने यहां बाजार में नहीं थी।पानी से भीगते -भीगते खूंटा और पगहा दोनों कमजोर हो जाते थे। कुछ जानवर भी हम लोगों (इंसानों) जैसे ही दुष्ट हुआ करते थे और पगहा या खूंटा जरा सा कमजोर हुआ कि, उसे तोड़कर, उखाड़कर राम जतन काका के खेत में चरने चले जाते थे। कुत्तों के भौंकने से यह अनुमान लगाया जाता था कि कोई जानवर छूटा हुआ है या कोई अजनबी आ गया है। प्रायः अच्छू बाबू (श्रीअच्छेलाल राजभर), राम उजागिर यादव या कोई भी जो जग जाए वह उसे पकड़कर बांध देता था। सुबह या जब भी रामजतन काका खेतवाई करने आते थे तो चरी हुई फसल को देखकर मां, बहिन की इतनी गाली देते थे कि आज कोई सोच नहीं सकता और आज देने पर तो लाठी चलना दूर भयंकर मारपीट हो जायेगी। जबकि जिसको गाली से नवाजते थे। हम सभी उनके अपने ही थे। जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि वे मन में कुछ नहीं रखते थे। शाम को प्रायः हमारे घर आ जाते थे (सुबह गरियाते थे उसी दिन शाम को ही) और देर तक बैठते थे, चाय पानी होता था, लगता है कुछ हुआ ही नहीं है। कितनी समझदारी थी। यह तो हुई उस जमाने की बात।
एसोसिएट प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग
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