छलका शहीद के पिता का गम
सतेन्द्र चौधरी बोले कि बेटे की पढ़ाई की खातिर पुसार गांव छोड़कर मेरठ रहने लगा। बेटे अभिनव ने भी पढ़ाई और पायलट तक का सफर तय कर सौ फीसदी दिया, लेकिन क्या पता था कि इतनी जल्दी हमें छोड़कर दुनिया से चले जाएगा। सतेंद्र बेटे के ताबूत को टकटकी लगाकर निहारने लगे। फिर बिलखते हुए बोले हमारा तो सबकुछ खत्म हो गया है। इससे ज्यादा और कष्ट की बात क्या होगी कि जिस बेटे के कंधों पर मुझे आना था, लेकिन उस बेटे की अर्थी को मुझे कंधों पर लाना पड़ा। भाकियू के नेता राकेश टिकैत ने सांत्वना देते हुए कहने लगे कि हिम्मत मत हारो सतेंद्र जी।...गम पहाड़ से बड़ा है, लेकिन हिम्मत से काम लो।
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