धुआं बना काल, चली गई दादी-पोते की जान



मेरठ। लिसाड़ी गेट के नूर गार्डन में नवाब के घर नाती के जन्म का जश्न मनाया जा रहा था। घर में मेहमान पहुंच चुके थे। सभी हंसी-खुशी के माहौल में नाच-गा रहे थे। इस बीच, सिलेंडर में लगी आग से अफरा-तफरी मच गई। आग के साथ-साथ चारों ओर धुआं फैल गया। दम घुटने से दादी और पोते की मौत हो गई जबकि तीन अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। पल भर में ही परिवार की सारी खुशियां मातम में बदल गईं।
मुजफ्फरनगर से आई थी नवाब की बहन
नवाब ने दो दिन पहले ही मुजफ्फरनगर के चित्तौड़ा में रहने वाली अपनी बहन रिहाना को फोन किया और बताया कि गुलशमा को बेटा होने की खुशी में समारोह है। नवाब ने बहन को खास तौर पर परिवार के साथ आने के लिए कहा। रिहाना भी अपने पोते शाद और अन्य लोगों के साथ भाई के घर पहुंच गई। मंगलवार शाम को समारोह मनाया जा रहा था। इसी दौरान यह घटना हुई।
जान बचाने को कमरे में छिपे, धुएं से घुट गया दम
रिहाना का पोता शाद गेट की तरफ ही था। अचानक से आग लगी तो पोते को बचाने के लिए रिहाना गेट पर दौड़ी। चूंकि गेट के बाहर की ओर ही सिलेंडर में आग लगी थी और आसपास मौजूद सामान ने भी आग पकड़ ली तो रिहाना बाहर नहीं आ सकी। ऐसे में जान बचाने के लिए पोते को लेकर रिहाना अंदर के कमरे की ओर दौड़ी। 50 गज के मकान में धुआं भरता चला गया और कमरे में मौजूद सभी लोगों का दम घुटने लगा। इसी के कारण रिहाना और उनके पोते की मौत हो गई।

काश...गेट से अलग बनाया होता खाना

सुबह के समय गेट के बाहर जब खाना बनाने का काम शुरू किया गया तो कुछ लोगों ने मना किया था। ऐसे में नवाब ने सिलेंडर दूसरी ओर रखने के लिए कह दिया। हालांकि दिन के बढ़ने के साथ ही हवा तेज हो गई और भट्ठी चलाने में परेशानी होने लगी। ऐसे में हलवाई ने दोबारा भट्ठी को गेट के पास शिफ्ट कर लिया। यदि सिलेंडर और भट्ठी गेट से दूर होती तो ये हादसा नहीं होता।

हौसला नहीं दिखाते तो जाती और भी जान
मोहल्ले के शकील, नूर मोहम्मद, रिजवान, इलियास और आसिफ ने हिम्मत दिखाई। धुआं घर में घुस रहा था और बाहर निकलने का रास्ता नहीं था। ऐसे में लोगों ने नवाब के घर की छत तोड़ डाली और अंदर फंसे लोगों को रस्सी की मदद से बाहर निकाला। सभी को समय से बाहर नहीं निकाला जाता तो मौतों का आंकड़ा बढ़ सकता था।

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