कुछ बोले- काफी कुछ सीखने को मिला, किसी ने कहा-   राष्ट्रहित से बढ़कर कुछ नहीं



Sanjay Verma 
मेरठ, 26 मार्च 2021।  गत वर्ष 25 मार्च 2020 में मेरठ समेत देश भर में कोरोना को देखते हुए लॉक डाउन लागू कर दिया गया था। उस वक्त जिदंगी पूरी तरह ठहर सी गयी थी। लोगों के लिये एक नये तरह का अनुभव था। अपनी व परिवार वालों की जान बचाने के लिये लोग अपने घरों में कैद हो गये थे। ऐसे वक्त में भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी आ गयी थी। इसमें पैरा मेडिकल स्टाफ के साथ अस्पताल के अन्य कर्मचारी भी शामिल थे। जहां कोरोना से प्रभावित लोगों का उनके अपने साथ छोड़ रहे थे, ऐसे वक्त में चिकित्सा विभाग ने अहम भूमिका निभायी। जिसे वर्षों तक याद किया जाएगा। अपने मजबूत इरादों के साथ ड्यूटी के फर्ज को जिम्मेदारी से निभाते हुए खुद कोरोना से प्रभावित भी हुए, ठीक होते ही फिर जरूरतमंदों और आम लोगों की सेवा में जुट गए, लेकिन हौसला नहीं खोया। उनका अनुभव अब काम आएगा क्यों कोरोना के केस एक बार फिर से बढ़ रहे हैं।
 बैक बोन खिसकने के बाद भी डयूटी से जुड़ी रही : डा. रचना नागर
  नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (यूपीएचसी) नगला बट्टू पर तैनात प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डा. रचना नागर ने कोरोना काल के कुछ अनुभव साझा किये। उन्होंने बताया कोरोना काल उनके लिये परीक्षा की घड़ी था। एक ओर जहां कोरोना से प्रभावितों के परिजन उनका साथ छोड़ रहे थे, उसी दौरान उन्होंने अपना धर्म निभाते हुए कोरोना प्रभावितों को तमाम सावधानी के साथ अस्पतालों में भर्ती कराया। इसी दौरान उनकी बैक बोन खिसक गयी, लेकिन इसके बाद भी वह अपनी बीमारी की चिंता न करते हुए कोरोना प्रभावितों की सेवा में लगी रहीं। बेटे को डेंगू होने के बाद भी वह चाहकर भी उसकी देखभाल नहीं कर सकीं। कई बार तो वह खुद डिप्रेशन का शिकार भी हो गयीं।


पॉजिटिव होते ही पड़ोसियों ने बनायी दूरी : मोनिया

 यूपीएचसी नगला बट्टू पर तैनात एएनएम मोनिया के लिये कोरोना काल का कड़वा अनुभव रहा। पहले तो कोरोना प्रभावितों का सर्वे करने में लोगों से भली-बुरी सुननी पड़ी। कोरोना प्रभावितों को तलाश कर उन्हें अस्पतालों में उपचार के लिये भर्ती कराने के दौरान तमाम सावधानियां बरतने के बाद भी खुद कोरोना की चपेट में आ गयीं। फेफड़ों की स्थिति इतनी ज्यादा खराब हो गयी कि चिकित्सकों ने भी जवाब दे दिया था। मोनिया कोरोना से ठीक होना अपनी दूसरी जिंदगी मानती हैं। उनका कहना है महीनों तक दो बच्चों से दूर रहकर भी वह तन-मन से मरीजों की जान बचाने के साथ कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक करने में जुटी रहीं।

 ड्यूटी पर जाने से मना करते थे पड़ोसी : गीता रानी
 कोल्ड चेन हेंडलर गीता रानी ने बताया पिछले साल जब कोरोना फैलना आरंभ हुआ तो आसपास पड़ोस के लोग उन्हें डूयटी पर जाने से मना करते थे। कई बार तो रास्ते में बैरिकेडिंग तक लगा दी जाती थी, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपना धर्म निभाते हुए अपनी डयूटी को निभाना पहला धर्म समझा।


  वाहन न चलने के कारण 10-15 किलो मीटर तक पैदल चलाना पड़ता था : पूजा

 यूपीएचसी नगला बट्टू पर तैनात सपोर्टिंग स्टाफ पूजा रानी ने बताया मेरठ में लॉक डाउन  होते ही वाहनों का चलना बंद हो गया था, जिसके कारण उन्हें कई बार अपने घर से 10 से 15 किलोमीटर तक पैदल चलकर कार्यालय आना पड़ता था। स्वास्थ्य विभाग में होने के कारण आस पड़ोस के साथ रिश्तेदारों के ताने सुनने पड़ते थे, लेकिन इन सब बातों को दरकिरनार करते हुए कोरोना प्रभावितों की जान बचाने में जी-जान से जुटी रहीं।

 पॉजिटिव होने पर सुसराल वालों ने तोड़ा नाता : प्रिया
 यूपीएचसी राजेन्द्र नगर में तैनात प्रिया पांडे का कोरोना काल दुख भरा रहा। कोरोना काल में कोरोना प्रभावितों का सर्वे करने, उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराने के दौरान वह कोरोना की चपेट में आ गयीं। इसका असर यह हुआ कि उनके वैवाहिक जीवन की डोर टूट गयी। सुसराल वालों ने उन्हें घर से बाहर निकाल कर रिश्ता तोड़ दिया। प्रिया ने हिम्मत नहीं हारी। वह इन सबसे उबरकर देश की सेवा में जुट गयीं। उनका कहना है उनके लिये राष्ट्र पहले है अन्य सब चीजें बाद में। उनका कहना है इन सबसे बाहर निकलना उनके लिये सबसे महत्वपूर्ण है। 

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