एमआईईटी में पांच दिवसीय फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में जुटे शिक्षाविद
मेरठ। मेरठ बाईपास एन.एच 58 स्थित मेरठ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ द्वारा पांच दिवसीय फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का आयोजन किया गया। जिसका विषय "पारंपरिक एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित शोध में उपयोग होने वाले जानवरों की देखभाल" रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण नई दिल्ली के संयुक्त निदेशक डॉ विजय पाल सिंह, एम्स से प्रोफेसर सुरेंद्र सिंह, एमआईईटी के चेयरमैन विष्णु शरण, वाइस चेयरमैन पुनीत अग्रवाल, डायरेक्टर डॉ मयंक गर्ग, डीन एकेडमिक डॉ डीके शर्मा, एफडीपी कोऑर्डिनेटर डॉ नितिन शर्मा ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया। एमआईईटी के चेयरमैन विष्णु शरण द्वारा मुख्य अतिथि डॉ विजय पाल सिंह और विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर सुरेंद्र सिंह को शॉल एवं प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
एफएसएसएआई के संयुक्त निदेशक डॉ विजय पाल सिंह ने बताया कि किसी भी दवाई को मनुष्य को देने से पहले क्लिनिकल ट्रायल के लिए जानवरों पर उपयोग किया जाता है। हमें अनुसंधान एवं शोध में इस्तेमाल करने वाले जानवरों को किस प्रकार से चयन करना है और किस प्रकार से उनकी देखभाल करनी है, यह बहुत बड़ा विषय है। किसी भी प्रकार के शोध के लिए जानवरों पर प्रयोग किया जाता है। जिसके लिए उनकी देख-भाल बहुत ही प्रभावशाली तरीके से होनी चाहिए, उन्होंने बताया अगर शोधकर्ता रोज अपने हाथ से दवाइयों की खुराक जानवर को दे रहा है, तो उसे नियमित तौर पर अपने हाथ से ही दवाई देनी पड़ेगी। अगर किसी दिन कोई और आपके जानवर को अपने हाथ से दवाई देगा तो जानवर किसी अजनबी व्यक्ति से तनाव महसूस करेगा। जिससे शोध परिणाम पर प्रभाव पड़ेगा और आपके शोध का जो डाटा है, वह खराब हो जाएगा। इसलिए शोधकर्ता को स्वयं अपने हाथों से ही जानवर को दवाई देनी चाहिए।
एम्स से प्रोफेसर सुरेंद्र सिंह ने कहा की पहली बार जब कोई रोग सामने आता है तो उसके उपचार के लिए नई दवाइयों का परीक्षण किया जाता है। उपचार के दौरान दवाओं के परीक्षण को क्लिनिकल ट्रायल (ड्रग ट्रायल) कहते हैं। लेकिन अब इन ट्रायल्स को गलत तरीके से अंजाम दिया जा रहा है। भारत में यह तेजी से पैर पसार रहा है। दुनियाभर में होने वाले क्लिनिकल ट्रायल्स में से पांच प्रतिशत अकेले हमारे यहां हो रहे हैं। फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के कोऑर्डिनेटर एवं डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिकल टेक्नोलॉजी के निदेशक डॉ नितिन शर्मा ने बताया कि एकेटीयू द्वारा प्रायोजित फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में शिक्षकों को शोध के लिए जानवरों को किस तरह से उपयोग करना है इसका वास्तविक ज्ञान सिखाया जाएगा। देश के विभिन्न राज्यों से लगभग 275 शिक्षकों ने भाग लिया। इस दौरान डॉ विपिन कुमार गर्ग, डॉ अनूप कुमार, अजय चौधरी, विश्वास गौतम आदि का सहयोग रहा।
No comments:
Post a Comment