हाथी के हांत खाने के ओर, दिखाने के ओर..


मुजफ्फरनगर।  यूं तो उत्तरप्रदेश में मिशन शक्ति के तहत महिलाओं की सुरक्षा के जयकारे लग रहे है वहीं दूसरी ओर इन जयकारों के शोर से अलग भी कुछ ऐसी आवाज है जिनको सुनने वाला कोई नहीं, हकीकत कुछ ओर ही बयान करती है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला हेल्प लाइन तो तैयार है पर बड़ा सवाल ये है कि क्या वो कभी काम करतती है। या यूं कहे कि हाथी के हांत खाने के ओर दिखाने के ओर। 
ये समाज की ऐसी काली सच्चाई है जिसका पता तो सबको है लेकिन इसका विरोध करने से हर कोई डरता है....हर शहर के छोटे छोटे मोहल्लों में कोई न कोई ऐसा नुक्कड़ या चौराहा जरूर होता है। जहाँ से गुजरने से पहले लड़कियों को सो बार सोचना पड़ता है। जिसको देख कर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे नारे को शर्मशार होना पड़ता है....जहाँ ये नारा खोखला साबित होता है और साथ ही महिलाओ की ढाल कही जाने वाली महिला हेल्प लाइन नं तो बेबस नज़र आती है। 
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कि मुझे एक लड़की प्रिया (काल्पनिक नाम) ने बताया कि वो ट्यूशन से शाम ७ बजे वापस आ रही थी.... तो कुछ लड़कों ने उसको अपशब्द कहे... और विरोध करने पर घर तक पीछा करते हुए आये....घर पर बताने की बात पर उसने ट्यूशन छोड़ने का डर ज़ाहिर किया....और बाद में रास्ता बदलने की बात कही....महिला हेल्प लाइन पर जब कॉल करने की बात जब मैंने पूछी तो....जवाब सुनकर पैरो ताले की ज़मीन खिसक गई....उसने बताया कि ३ बार कॉल करने पर बस एक गाना सुनाई दिया, लेकिन कोई मदद नहीं मिल पाई। जैसे-तैसे वह लड़की डरी सहमी अपने घर पहुंची।  
....अब कॉल का कोई रिस्पांस न आना...सरकार की लापरवाही है या टेक्नोलॉजी की कोई खराबी....लेकिन इतना तो समझ आ गया कि.... महिलाओ की सुरक्षा के नाम पर दावे तो तमाम किए जा रहे है पर हकीकत जगजाहिर है....ऐसी तमाम घटनाएं शहर के कई चौराहों पर रोज होती ही और सिर्फ एक या दो लड़कियों के साथ नही होता, ये सब तो नजाने कितनी लड़कियों को कितनी बार बर्दाश्त करना पड़ता होगा...बड़े-बड़े मंच से भाषण देने वालों जरा जमीनी हकीकत जानों कहीं ऐसा ना हो कि हर शहर-हर गली-हर मौहल्ले में निर्भया पैदा हो जाए। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे पढ़ेगी बेटी, कैसे बढ़ेगी बेटी।


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