कब रुकेगी साइबर ठगी
इलमा अज़ीम
तमाम प्रयासों के बाद भी साइबर ठगों की कारस्तानी पर लगाम लगती नहीं दिख रही है। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता होगा जब कोई बुजुर्ग या आम लोग साइबर ठगी के शिकार न हुए हों। पिछले दिनों महाराष्ट्र में एक सेवानिवृत्त जज भी डिजिटल अरेस्ट स्कैम के शिकार हो गए। अब समय आ गया है कि हम तकनीक को ही रक्षा के लिए हथियार बनाएं।
भारत में एआई आधारित सुरक्षा उपकरण, जैसे अनोमली डिटेक्शन बॉट्स, रियल-टाइम स्कैम अलर्ट और फ्रॉड पैटर्न पहचानने वाले एल्गोरिदम बनाने की क्षमता है। इसके जरिए साइबर ठगों पर कुछ लगाम लग सकती है। वैसे आम आदमी को साइबर ठगों व फर्जी फोन कॉल्स से बचाने के लिये पुख्ता व्यवस्था होना बेहद जरूरी है।
आम लोगों की सुविधा व सुरक्षा के लिये सरकार के प्रयासों के बाद अब दूरसंचार विभाग ने मार्च 2026 में ऐसी व्यवस्था लागू करने के तैयारी की, जिसमें बिना ट्रू-कॉलर के खुद मोबाइल अवांछित फोन के प्रति सजग करेगा। नियामक संस्था ट्राई ने इस प्रस्ताव पर सहमति जतायी है।
डिजिटल साक्षरता के जरिए इस तरह ठगों के शिकार होने से लोगों को बचाया जा सकता है। स्कूलों और कॉलेजों में इसके लिए छात्रों के बीच जागरूकता फैलाई जा सकती है। सामुदायिक कार्यशालाओं के जरिए साइबर सुरक्षा से जुड़ी जानकारी लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों को इस तरह के फ्रॉड से लड़ने के लिए तैयार करना जरूरी है। क्षेत्रीय भाषाओं में इसके खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है। साइबर अपराध को लेकर भारत की कानून-प्रणाली को भी बदलना होगा। साइबर अपराध सेल बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें त्वरित डेटा, कुशल फोरेंसिक विशेषज्ञ की जरूरत है, ताकी ऐसे मामले तुरंत लोकल लेवल पर भी निपटाए जा सकें। इसके अलावा डेटा सुरक्षा के लिए सख्त कानून, सुरक्षित ऐप फ्रेमवर्क बेहद जरूरी है।
बैंकों, टेलीकॉम कंपनियों और प्लेटफॉर्म को अपनी सुरक्षा मजबूत करने और उपयोगकर्ताओं को शिक्षित करने की जिम्मेदारी लेनी होगी। अपराधियों का संजाल इतना विस्तृत व रहस्यमय है कि प्रवर्तन एजेंसियां जब तक उन तक पहुंचती हैं, पैसा विदेशों में ट्रांसफर हो जाता है।
इस संकट का एक पहलू अनजान नंबरों से आने वाली फोन कॉल्स होती हैं, जिसके जरिये अपराधी लोगों को भ्रमित कर जीवन की जमा पूंजी लूट लेते हैं। दरअसल, संचार क्रांति के चलते तमाम सेवाएं ऑनलाइन उपलब्ध हुई हैं, लेकिन इस सुविधा के साथ पुरानी पीढ़ी साम्य नहीं बैठा पाती है।






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