यूपीआई ने बदली दिशा
इलमा अज़ीम
जिस देश में कभी बैंक तक पहुंचना कठिन माना जाता था, वहां आज मोबाइल फोन से भुगतान करना सामान्य बात हो गई है। यह परिवर्तन योजनाबद्ध दृष्टिकोण, तकनीकी नवाचार और सरकारी प्रतिबद्धता का परिणाम है। यूपीआई ने भारतीय समाज में आर्थिक व्यवहार की सोच को ही बदल दिया।
अब कोई छोटा दुकानदार, सब्जी विक्रेता, ऑटो चालक या किसान भी अपने मोबाइल पर क्यूआर कोड लगाकर भुगतान स्वीकार करता है। इससे न केवल लेन-देन की प्रक्रिया सरल हुई है, बल्कि विश्वास और पारदर्शिता भी बढ़ी है। नकदी पर निर्भरता घटने से भ्रष्टाचार और काले धन की प्रवृत्ति पर भी अंकुश लगा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यूपीआई ने ‘एक राष्ट्र, एक भुगतान प्रणाली’ की भावना को साकार कर दिखाया है। इस दीपावली से पहले के सप्ताह में यूपीआई के माध्यम से जितने भुगतान हुए, वे पिछले वर्ष की तुलना में कहीं अधिक रहे।
इसका अर्थ यह है कि अब त्योहारों पर लोगों की खरीददारी का बड़ा हिस्सा डिजिटल माध्यम से हो रहा है। यह विश्वास का संकेत है- विश्वास तकनीक पर, बैंकिंग तंत्र पर और सबसे बढक़र देश की नीति पर। इस उपलब्धि को केवल एक तकनीकी सुधार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता को कम करने वाला एक औजार भी है।
आज कोई भी व्यक्ति, चाहे उसके पास डेबिट कार्ड हो या नहीं, केवल एक मोबाइल और बैंक खाते से देश के किसी भी कोने में भुगतान कर सकता है। यह सुविधा विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक समावेशन का मार्ग खोल रही है। यूपीआई का प्रभाव केवल लेन-देन तक सीमित नहीं है। इसने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) के लिए भी नई संभावनाएं उत्पन्न की हैं।
छोटे उद्योग अब भुगतान के लिए बिचौलियों पर निर्भर नहीं रहे। त्वरित भुगतान ने उनकी कार्यशील पूंजी को गति दी है और उत्पादन चक्र को सरल बनाया है। इससे रोजगार सृजन में भी वृद्धि हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की इस पहल की सराहना हो रही है। भारत ने सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, भूटान, फ्रांस और कतर जैसे देशों के साथ समझौते कर यूपीआई को वहां स्वीकार्य बनाया है।





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