ब्रेस्ट कैंसर से डर नहीं जागरूकता और समय पर इलाज ज़रूरी
मेरठ। हर साल अक्टूबर का महीना ब्रेस्ट कैंसर अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है, लेकिन असली जागरूकता सिर्फ रिबन पहनने या नारे लगाने तक सीमित नहीं है। असली चुनौती है इस विषय पर चुप्पी तोड़ने की खासतौर पर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में, जहाँ सामाजिक झिझक और जानकारी की कमी के कारण बीमारी का पता देर से चलता है और इलाज शुरू होने में समय लग जाता है। यह बात मैक्स हॉस्पिटल केडा . अभिषेक गुलिया ने कही।
उन्होंने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर का सबसे मज़बूत संदेश यही है कि अगर इसे शुरुआती अवस्था में पहचाना जाए तो यह पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। स्टेज I या II में पहचान होने पर इलाज आसान, कम समय का और ज़्यादातर मामलों में सफल होता है। कई बार तो मरीज को कीमोथेरेपी की भी ज़रूरत नहीं पड़ती—सर्जरी और रेडिएशन या हार्मोनल दवाओं से ही पर्याप्त लाभ मिल जाता है।
बताया कि “एक ऑन्कोलॉजिस्ट के रूप में मैं हर तबके की महिलाओं से मिलता हूँ—गृहिणियाँ, अध्यापिकाएँ, किसान, दुकानदार—दुर्भाग्यवश, इनमें से कई हमारे पास तब आती हैं जब बीमारी काफ़ी बढ़ चुकी होती है। ऐसा उनकी लापरवाही के कारण नहीं, बल्कि इसलिए क्योंकि वे लक्षण पहचान नहीं पातीं या फिर डर और झिझक के कारण समय पर डॉक्टर से सलाह नहीं लेतीं। अक्सर यह डर होता है कि “कैंसर मतलब मौत।” लेकिन यह सच नहीं है, खासकर ब्रेस्ट कैंसर के मामले में। यह एक ही प्रकार की बीमारी नहीं है। कुछ प्रकार धीरे-धीरे बढ़ते हैं और आसानी से नियंत्रित किए जा सकते हैं, जबकि कुछ अधिक आक्रामक होते हैं और गहन इलाज की ज़रूरत होती है। आज हमारे पास रिसेप्टर टेस्टिंग (ER/PR, HER2) और मॉलेक्युलर प्रोफाइलिंग जैसी आधुनिक तकनीकें हैं जो हमें कैंसर के सटीक प्रकार को समझने में मदद करती हैं। इससे उपचार को व्यक्ति-विशिष्ट, प्रभावी और कम साइड इफेक्ट वाला बनाया जा सकता है।“
अब ब्रेस्ट हटाने वाली सर्जरी (मास्टेक्टॉमी) ही एकमात्र विकल्प नहीं रही। आजकल ब्रेस्ट-कंजरविंग सर्जरी यानी केवल ट्यूमर और आसपास के थोड़े हिस्से को निकालने की तकनीक सामान्य हो चुकी है। आधुनिक रेडिएशन तकनीक के साथ यह न केवल जीवन बचाती है, बल्कि शरीर की सुंदरता को भी बनाए रखती है, जिससे मरीज के आत्मविश्वास पर भी सकारात्मक असर पड़ता है।
डॉ. अभिषेक ने आगे बताया कि “आज भी रेडिएशन और कीमोथेरेपी का नाम सुनकर डर लगता है, लेकिन अब ये इलाज पहले से कहीं ज़्यादा सुरक्षित और आरामदायक हैं। नई रेडिएशन तकनीकें सिर्फ कैंसर वाले हिस्से पर सटीक रूप से असर करती हैं, जिससे हृदय, फेफड़े और अन्य स्वस्थ अंग सुरक्षित रहते हैं। कीमोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी भी अब बेहतर ढंग से सहन की जा सकती हैं। सपोर्टिव दवाओं की मदद से महिलाएँ इलाज के दौरान भी अपना रोज़मर्रा का जीवन और कामकाज जारी रख पाती हैं। ब्रेस्ट कैंसर कोई वर्जित विषय नहीं है, और यह मौत की सज़ा भी नहीं है। यह एक ऐसी बीमारी है जो सही समय पर इलाज मिलने पर पूरी तरह से ठीक हो सकती है।“
इस अक्टूबर, केवल प्रतीकात्मक पिंक रिबन तक सीमित न रहें। आइए—अपनी माताओं, बहनों और पत्नियों को नियमित जांच कराने के लिए प्रेरित करें, हर महिला को हर महीने सेल्फ एग्ज़ामिनेशन के लिए जागरूक करें, और घर, स्कूल व कार्यस्थल पर सही जानकारी साझा करें। क्योंकि शुरुआती पहचान न केवल जीवन बचाती है, बल्कि स्वास्थ्य, आत्मसम्मान और जीवन की गुणवत्ता को भी बनाए रखती है।
 
 
 

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