आरटीआई कानून बने प्रभावी
इलमा अज़ीम
आरटीआई कानून शासन-प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए है जो लोकतंत्र की जरूरत भी है। आवेदन करने में बाधाओं के बावजूद अब वेबसाइट लिंक मुहैया होना सकारात्मक पहलू है। बेशक कुछ संशोधनों से सूचना आयोगों पर असर पड़ा है। पूरे 20 साल पुराने इस कानून को प्रभावी बनाने के लिए लोगों को आगे आना होगा।
यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि लोकतंत्र में सरकार का सार तत्व पारदर्शिता है, ताकि प्रत्येक अंग - कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका- नागरिक के प्रति जवाबदेह हो। लेकिन जहां तक भारत में नौकरशाही की मानसिकता का प्रश्न है, ‘माई-बाप’ वाली सामंती सोच गणतंत्र के जन्म के बाद भी लंबे समय तक कायम है। सूचना का अधिकार अधिनियम घोषित करता है कि लोकतंत्र के लिए एक जागरूक नागरिक वर्ग और सूचना की पारदर्शिता होना आवश्यक है, जो इसके संचालन के लिए तो अत्यंत आवश्यक है ही, साथ ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, सरकारों एवं उनके तंत्रों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए भी जरूरी है।
इस प्रकार, यह अधिनियम लोकतंत्र में नागरिकों को शासन में प्रमुख भागीदार बनाने का प्रयास करता है। इस दृष्टि से देखा जाए तो यह कानून शासन को अत्यधिक सुदृढ़ बनाने में एक माध्यम है। दो प्रतिष्ठित गैर-सरकारी संगठनों - सूचना का अधिकार आकलन एवं विश्लेषण समूह (आरएएजी) और जन सूचना के अधिकार के लिए राष्ट्रीय अभियान - ने अपनी जन आकलन रिपोर्ट (2008) में 11 राज्यों से प्राप्त फीडबैक के विस्तृत विश्लेषण के आधार पर पाया कि आरटीआई अधिनियम को लेकर जागरूकता स्तर, अपने प्रारंभिक चरण में किसी भी अन्य कानून के बारे में जागरूकता की तुलना में काफी ऊपर था।
सर्वे में भाग लेने वाले 40 प्रतिशत से अधिक शहरी उत्तरदाताओं को इस अधिनियम के बारे में जानकारी थी, हालांकि ग्रामीण उत्तरदाताओं में यह आंकड़ा 20 फीसदी से भी कम था। नकारात्मक पहलू यह पाया गया कि प्रशासनिक अड़चनें आवेदन दाखिल करने में अड़ंगा डालती रहीं। यह मुश्किल इस तथ्य से और बढ़ गई कि देश भर में अधिनियम को लागू करने के लिए आरटीआई नियमों के 114 अलग-अलग सेट थे और ऐसी कोई एक जगह नहीं थी जहां वे सभी सुलभ हों।
कुछ राज्यों ने तो अधिनियम की धारा 4(4) के बावजूद केवल स्थानीय भाषा में पत्राचार पर जोर दिया, जबकि उक्त धारा कहती हैः आवश्यक है कि सूचना ‘उस क्षेत्र में संचार की सबसे प्रभावशाली विधि’ द्वारा प्रदान की जाए। सूचना के अधिकार को भारत के लोगों के लिए वास्तविक बनाने में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। सबसे अहम यह कि इस माध्यम से भारत के नागरिकों को शासन प्रणाली का हिस्सा बनने की ज़रूरत है।


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