उत्सव में उपहार

- ललिता जोशी
अपना देश  पर्व, त्योहारों और उत्सवों का है । वर्षपर्यंत कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है । इन उत्सवों पर बाजारवादी ताकतों की पैनी निगाह रहती है । छोटे से छोटे उत्सव पर कोई न कोई सेल लगती है और पूरा बाज़ार तोहफों से पटा पड़ा रहता है । हमारा देश उत्सवधर्मिता के लिए प्रसिद्ध है । अपने देश में जन्म से लेकर मृत्यु तक कोई न कोई कार्य या फिर कोई न कोई कर्मकांड  चलता रहता है । अब तो जन्मोत्सव तो मनाना ही है क्योंकि परिवार में एक नए सदस्य का आगमन होता है यहाँ तक तो ठीक है  लेकिन अब तो  बयार ऐसी चली है लोग  कह कर जाते हैं की उनकी मृत्यु को मुक्ति उत्सव के रूप में मनाया जाये । इसके अतिरिक्त अपने देश में बारह माह कुछ न कुछ त्योहार और उत्सव चलते ही रहते हैं ।
अपने यहाँ संक्रांति, वसंत पंचमी, होली, बैसाखी, तीज, गणेशोत्सव, नवरात्र, करवाचौथ, दीपावली के अलावा ईद, क्रिसमस इत्यादि जैसे उत्सवों  में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में उमंग का संचार होता है। इन सभी त्योहारों पर बाज़ार की दृष्टि रहती है । दृष्टि नहीं बल्कि गिद्ध दृष्टि होती है । अपने यहाँ आज कल त्योहारों की बहार आई हुई है । बाज़ारों में अभी से भीड़ उमड़ रही है और आगे-आगे ये भीड़ जन सैलाब का रूप धारण कर लेगी । बाज़ारों और सड़कों पर जहां दृष्टिपात करो वहाँ नर कपाल नज़र आते हैं । ये तो त्योहारोत्सव हैं।
 
आजकल अपने देश में उत्सवों का उत्सव बचतोत्सव चल रहा है । इस उत्सव का धर्म और व्यक्ति की निजि खुशी से कोई लेना -देना नहीं है । अभी हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने जीएसटी की दरों में कटौती की है ताकि आम जनता को सस्ती दरों में वस्तुएं उपलब्ध हों और वो  बचत भी कर सकें । मज़े की बात है कि ये उत्सव राजनीतिक है मगर इसका  लक्ष्य है, आम आदमी की क्रय शक्ति में वृद्धि हो और दुकानदारों  की बिक्री बढ़े फिर आमदनी में इजाफा हो । मज़ेदार बात है कि हमारे मंत्री,मुख्यमंत्री ,सांसद और विधायक सभी जीएसटी की घटी  दरों का जायजा दुकानों पर जाकर ले रहे थे ,लेकिन जब हम ड्राइफ्रूट्स खरीदने गए तो वो पहले से और ज्यादा मंहगे मिले । जब उत्साहित होकर हमने कहा की सरकार ने जीएसटी की दर घटा दी है तो दुकानदार ने कहा कि  हम तो सामान महंगा ही खरीद रहे हैं , जीएसटी कम है तो क्या। सरकार ने तो गाजे-बाजे के साथ दिखा दिया कि जीएसटी कम हो गई और उपभोक्ता को अब सामान सस्ता मिलेगा और ये भी दिखाया और कि दुकानदार कम कीमत पर सामान बेच रहे हैं । जब आम आदमी सामान खरीदने पहुंचा तो सब कुछ पुराने दामों पर ही मिल रहा था । जब पूछा तो जवाब मिला की हमने तो पुरानी कीमतों पर सामान खरीदा है तो हम सस्ता कैसे दे दें । जब हमें सस्ता माल मिलेगा तो सस्ता देंगे । बात तो सही है ।


फिर एक सवाल दिमाग में धमाचौकड़ी मचा रहा था कि जब सामान सस्ता  होता है तो ये दुकानदार  उसे कम दामों में खरीद  कर जमा कर लेते हैं और जब उस सामान  या वस्तु का दाम आसमान छूने लगता है तो फिर गोदामों से माल निकाल कर उसे मुंह मांगे दामों पर बेचते हैं ।बेचारा ग्राहक मरता क्या न करता ।उसे तो अपनी जरूरत का सामान खरीदना ही है । अक्सर कहा जाता है कि अगर  टमाटर मंहगा है तो मत खाओ ,प्याज महंगा हो गया तो खाना छोड़ दो। सोना महंगा हो गया है तो मत खरीदो । अजीब मज़ाक है सोना मंहगा है तो उसके बिना आम आदमी काम चला लेगा लेकिन आलू,प्याज और टमाटर जैसे  खाना बनाने में प्रयुक्त की जाने वाली मूलभूत सब्जियों के बिना कैसे काम चलेगा ।  
जीएसटी की कम दरों का असर तो वाहन इंडस्ट्री में देखने को मिली है । बम्पर बिक्री हुई गाड़ियों की । कहीं धूप और कहीं छाँव जैसा प्रभाव पड़ा है जीएसटी का लोगों पर । उत्पादन कर्ता अलग से परेशान हैं उनका अपना अलग ही रोना है कि अगर हम सादा नमक बेचते है तो जीएसटी कुछ नहीं है जैसे ही ये ब्रांडेड मसालेदार नमक में परिवर्तित हो जाएगा तो ये नमक जी 5% या 18%हो सकता है । ऐसे न जाने कितनी वस्तुएं हैं जो 5 से 18% के बीच आ जाती हैं । उच्च शिक्षा पर जीएसटी लगती है । जब कोई सामान या सेवा जीएसटी फ्री होती उसमें भी एक पेंच है,विक्रेता को उस सामान या सेवा पर खर्च किए गए टैक्स का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC)नहीं मिलता । इसका मतलब ये है कि खर्च बढ़ जाता है और ग्राहक को सामान महंगा पड़ सकता है । अरे भई कान ऐसे पकड़ो या वैसे पकड़ा तो कान ही गया है । दर्द तो कान को ही होना है ।यही है जीएसटी का छलावा ।


सामान की खपत तो होनी ही है कई बार तो लगता है की बचत की ही खपत हो रही है । तो फिर ये उत्सव कैसा है बचतोत्सव। बस अब यही आशा की आम जन बचा रहे बस ईश्वर की कृपा से । आम आदमी कभी महंगाई से तो ,कभी दुर्घटना से तो प्रकृति की मार से मरता है या फिर टैक्स की मार से । बस प्राणोत्सव चलता रहे । रहें न रहें हम महका करेगा करेंगे बनके कली ,बनके सबा ,बाग-ए-वफा में मौसम कोई हो इस चमन में रंग बनके रहेंगे.... ठीक ऐसे ही बचत तो नहीं हम खपके रहेंगे ।
(मुनिरका एंक्लेव, दिल्ली)

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