मोटापे और ब्रेस्ट कैंसर का संबंध

जोखिम को समझें और सही कदम उठाएं

मेरठ। ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं में सबसे सामान्य कैंसरों में से एक है, जिसके पीछे आनुवंशिक और जीवनशैली से जुड़े कई कारण होते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाने वाला जोखिम कारक है मोटापा। दुनियाभर में, खासकर भारत में बढ़ते मोटापे के मामलों के चलते ब्रेस्ट कैंसर और मोटापे का यह संबंध और भी प्रासंगिक हो गया है।

अत्यधिक वजन केवल दिखावट या फिटनेस से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि यह शरीर के हार्मोनल और सेलुलर स्तर पर काम करने के तरीके को भी प्रभावित करता है। ये आंतरिक बदलाव ब्रेस्ट कैंसर के विकसित होने की संभावना बढ़ा सकते हैं, विशेष रूप से मीनोपॉज के बाद। इस संबंध को समझना रोकथाम और शुरुआती पहचान की दिशा में एक अहम कदम है।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, शालीमार बाग के ऑन्कोलॉजी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर एवं यूनिट हेड डॉ. अनादी पचौरी ने बताया कि “शरीर में अतिरिक्त चर्बी कई ऐसे बदलाव लाती है जो कैंसर के विकास की संभावना को बढ़ा सकते हैं। मीनोपॉज के बाद, फैट टिश्यू शरीर में एस्ट्रोजन (Estrogen) का मुख्य स्रोत बन जाता है। जब शरीर में चर्बी अधिक होती है, तो एस्ट्रोजन का स्तर भी बढ़ जाता है, जो कुछ प्रकार के ब्रेस्ट कैंसर सेल्स की वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है। इसके अलावा, मोटापा लंबे समय तक चलने वाली हल्की सूजन (chronic inflammation) को जन्म देता है, जो धीरे-धीरे सेल्स को नुकसान पहुंचाकर कैंसर की संभावना बढ़ा सकता है। मोटापे से इंसुलिन और इंसुलिन जैसे ग्रोथ फैक्टर का स्तर भी बढ़ जाता है, जो कैंसर सेल्स की वृद्धि और फैलाव में सहायक होते हैं, जिससे बीमारी और आक्रामक रूप ले सकती है।“

डॉ. अनादी ने आगे बताया कि  “मोटापा न केवल ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को बढ़ाता है, बल्कि उसकी पहचान और उपचार को भी प्रभावित कर सकता है। अधिक चर्बी की परतें शारीरिक जांच के दौरान गांठों का पता लगाने में कठिनाई पैदा करती हैं। साथ ही, घनी टिश्यू वाली छाती में मैमोग्राम के दौरान ट्यूमर को देख पाना मुश्किल हो सकता है, जिससे डायग्नोसिस में देरी हो सकती है। उपचार के दौरान भी मोटापा कई तरह की जटिलताएं ला सकता है — जैसे सर्जरी के दौरान जटिलता का बढ़ा जोखिम और दवाओं के अवशोषण (absorption) पर प्रभाव, जिससे उपचार का परिणाम प्रभावित हो सकता है। मोटापा महिलाओं में कैंसर की वापसी (recurrence) और मृत्यु दर को भी बढ़ा सकता है, क्योंकि यह हार्मोनल असंतुलन और मेटाबोलिक बदलावों को जन्म देता है।“

अच्छी बात यह है कि वजन एक ऐसा जोखिम कारक है जिसे बदला जा सकता है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है। स्वस्थ वजन बनाए रखें और अगर वजन अधिक है तो धीरे-धीरे और स्थायी रूप से वजन घटाने का लक्ष्य रखें, न कि क्रैश डाइट्स के ज़रिए। भोजन में फलों, सब्जियों, साबुत अनाज, प्रोटीन और हेल्दी फैट्स को शामिल करें तथा प्रोसेस्ड फूड, शक्करयुक्त पेय और संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थों को कम करें। उच्च फाइबर वाले खाद्य पदार्थ हार्मोनल संतुलन और पाचन स्वास्थ्य में मदद करते हैं।

शारीरिक रूप से सक्रिय रहना भी बेहद जरूरी है। सप्ताह में कम से कम 150 मिनट मध्यम शारीरिक गतिविधि जैसे पैदल चलना, तैरना या साइकिल चलाना करें, साथ ही सप्ताह में दो बार स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी शामिल करें। शराब का सेवन यथासंभव सीमित या पूरी तरह बंद करें, क्योंकि अल्कोहल का सेवन ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम बढ़ा सकता है।

ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम और सफल उपचार के लिए नियमित जांच बेहद महत्वपूर्ण है। मैमोग्राम से ट्यूमर को शुरुआती अवस्था में ही पहचाना जा सकता है, जबकि चिकित्सकों द्वारा की गई क्लीनिकल ब्रेस्ट एग्जाम अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करती है। महिलाओं को स्वयं भी अपने ब्रेस्ट में होने वाले किसी भी असामान्य परिवर्तन पर ध्यान देना चाहिए। जिन महिलाओं का वजन अधिक है या अन्य कारणों से जोखिम ज्यादा है, उन्हें डॉक्टर से परामर्श कर नियमित जांच का समय निर्धारित करना चाहिए।

मोटापा और ब्रेस्ट कैंसर के बीच का संबंध स्पष्ट और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है। अतिरिक्त वजन शरीर के हार्मोन, सूजन और इंसुलिन स्तर को प्रभावित करता है, जिससे न केवल कैंसर का खतरा बढ़ता है बल्कि उसकी पहचान और उपचार भी जटिल हो सकते हैं। हालांकि, सकारात्मक बात यह है कि इस जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है। संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, स्वस्थ वजन और समय-समय पर जांच के ज़रिए महिलाएं अपने स्तन स्वास्थ्य की रक्षा कर सकती हैं और कैंसर का पता लगने की स्थिति में बेहतर उपचार परिणाम प्राप्त कर सकती हैं।

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