राष्ट्रीय नीतियां और जनसंख्या का अतिरेक


- संजीव ठाकुर
जनसंख्या किसी भी राष्ट्र का आधार होती है। यह न केवल समाज के ढाँचे को आकार देती है बल्कि आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास को भी दिशा देती है।संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत 2023 में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है। यह स्थिति भारत के लिए दोहरी चुनौती है। एक ओर हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी श्रमशक्ति और विशाल उपभोक्ता वर्ग है। दूसरी ओर, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की कमी हमें इस जनसंख्या लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को बोझ में बदलने की ओर धकेल सकती है।  
इतिहास साक्षी है कि जब भी किसी राष्ट्र ने अपनी जनसंख्या सही दिशा  दिखाई है तो उसे राष्ट्र ने विकास की धारा को अपना कर एक विकसित राष्ट्र बनाया है । लेकिन जब यही जनसंख्या अनियंत्रित हो गई, तो वह गरीबी, बेरोजगारी और नियत संसाधनों के ह्रास का कारण बन कर देश को अन्य देशों की तुलना में काफी पीछे ढ़केल दिया है।
      भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में जनसंख्या का प्रश्न केवल आँकड़ों का ही नहीं बल्कि विकास के पैमाने का भी है। देश की 65 % जनसंख्या युवा जनसंख्या है यह स्थिति भारत को दुनिया की सबसे बड़ी श्रमशक्ति प्रदान करती है। यदि इन्हें सही शिक्षा और प्रशिक्षण मिले तो यह जनसंख्या भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने में सहायक हो सकती है।
अधिक जनसंख्या का मतलब बडी उपभोक्ता शक्ति और संभावनाएं। यही कारण है कि वैश्विक उपभोक्ता कंपनियाँ भारत को अपनी सामग्री बेचने का सबसे बड़ा बाज़ार मानती हैं। विशाल जनसंख्या के कारण यहाँ वस्तुओं और सेवाओं की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे उद्योग-धंधों को लगातार निरंतर प्रोत्साहन मिलता है।
अधिक लोग, अधिक विचारधारा, बड़ी आबादी के बीच से नई सोच, तकनीकी आविष्कार और सृजनशीलता के अवसर बढ़ते हैं। भारतीय युवाओं की प्रतिभा ने आईटी, स्टार्टअप और वैज्ञानिक अनुसंधान में विश्व पटल पर भारत की साख मजबूत की है।
विविध जनसंख्या भारत की सांस्कृतिक शक्ति है। अलग-अलग भाषाएँ, परंपराएँ और जीवनशैली समाज को गतिशील और समृद्ध बनाती हैं। यही विविधता भारत को विश्व मंच पर “बहुलता में एकता” का संदेश देने योग्य बनाती है।
भारत की सबसे बड़ी और गंभीर समस्या यह है कि हर  साल।लाखों युवा श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं, परंतु उनके लिए पर्याप्त रोजगार के संसाधन  उपलब्ध नहीं होते हैं परिणामस्वरूप बड़ी आबादी बेरोजगार रह जाती है या असंगठित क्षेत्र में कम आय पर काम करती है। बेरोजगारी तथा अत्यधिक जनसंख्या का सीधा असर परिवार की आय पर पड़ता है। बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने को विवश हैं। यही गरीबी अशिक्षा और कुपोषण को जन्म देती है, जिससे विकास का चक्र धीमा पड़ जाता है।
भूमि, जल, ऊर्जा और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं। लेकिन बढ़ती जनसंख्या इनके अति-दोहन का कारण बनती है। जल संकट, भूमि क्षरण और ऊर्जा की कमी जैसी समस्याएँ तेजी से सामने आ रही हैं बढ़ती जनसंख्या का बड़ा हिस्सा रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करता है। इससे महानगरों में झुग्गी-झोपड़ियाँ बढ़ती हैं, यातायात और प्रदूषण की समस्या गहराती है तथा जीवन स्तर गिरता है।
जनसंख्या वृद्धि का सबसे बड़ा दुष्परिणाम पर्यावरण पर पड़ता है। प्रदूषण, वनों की कटाई, कचरे का बढ़ता ढेर और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन ये सभी अनियंत्रित आबादी के प्रत्यक्ष नतीजे हैं।
जब जनसंख्या का बड़ा हिस्सा बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित रह जाता है तो समाज में असंतोष, तनाव और अपराध बढ़ने लगते हैं। यही स्थिति सामाजिक असमानता और असुरक्षा को जन्म देती है।
चीन ने जनसंख्या नियंत्रण में “वन चाइल्ड पॉलिसी” जैसी कठोर नीतियों का सहारा लिया, जबकि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के चलते जागरूकता और परिवार नियोजन पर जोर दिया गया है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों और अशिक्षित वर्गों में अभी भी जागरूकता का स्तर कम
सरकारी कार्यक्रमों और जनसंचार माध्यमों के जरिए छोटे परिवार के लाभ समझाना आवश्यक है। गर्भनिरोधक साधनों की उपलब्धता और प्रचार-प्रसार बढ़ाना होगा।
शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है। खासकर महिला शिक्षा जनसंख्या नियंत्रण में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। शिक्षित महिला न केवल स्वयं जागरूक होती है बल्कि पूरे परिवार को बेहतर दिशा देती है।
युवा शक्ति को सही दिशा तभी मिल सकती है जब उन्हें काम मिले। सरकार को कौशल विकास योजनाओं और उद्यमिता को बढ़ावा देना होगा। स्टार्टअप और लघु उद्योग इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
शहरों पर बोझ कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आधारभूत सुविधाओं का विकास आवश्यक है। इससे पलायन रुकेगा और संतुलित विकास होगा।
जनसंख्या को उत्पादक संसाधन बनाने के लिए स्वास्थ्य सुविधाएँ सुलभ और किफ़ायती बनानी होंगी। कुपोषण और मातृ-शिशु मृत्यु दर घटाने पर विशेष ध्यान देना होगा।


भारत के लिए जनसंख्या एक दोधारी तलवार है। यदि इसे सही दिशा, शिक्षा और रोजगार मिले तो यही जनसंख्या हमें विश्व शक्ति बनाने का सबसे बड़ा आधार बन सकती है। लेकिन यदि यह अनियंत्रित और अशिक्षित रही तो यही जनसंख्या गरीबी, बेरोजगारी और अशांति का सबसे बड़ा कारण भी बन सकती है।अतः आवश्यकता है कि हम इसे केवल बोझ न मानें, बल्कि अवसर के रूप में देखें और नियंत्रण, शिक्षा और विकास के माध्यम से इसे राष्ट्र की शक्ति में परिवर्तित करें।
(चिंतक, स्तंभकार, रायपुर, छत्तीसगढ़)

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