इलमा अज़ीम
छिंदवाड़ा में कोल्ड्रिप कफ सिरप से हुई बच्चों की मौत के बाद इसे प्रबंधित कर दिया गया। घटना के तकरीबन एक सप्ताह बाद सक्रिय हुआ शासनतंत्र संबंधित डाक्टर को भी गिरफ्तार कर लिया। अब यूपी में भी इस सिरप को लेकर मारामारी मची है। लेकिन यह सब तब हुआ जब बच्चों की मौत हो गई। ऐसा नहीं है कि ये मौतें एक दिन में हुई हों। कई दिनों से बच्चों की मौतें हो रहीं थीं। सरकार और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी चुप्पी साधकर बैठे रहे, जिसके कारण अकेले मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 12 बच्चों की मौत हो गई। इनमें से 11 बच्चे तो एक ही तहसील के थे।
कितना जागरूक है हमारा सरकारी तंत्र कि मध्य प्रदेश सरकार को कफ सिरप को प्रतिबंधित करने में एक हफ्ते से ज्यादा का समय लग गया। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दवा के निर्माण, मूल्य नियत्रण, गुणवत्ता के साथ ही दवा कारोबार पर नियंत्रण रखने को लेकर जिम्मेदार हैं। पिछले कुछ वर्षों से यह विभाग पूरी तरह से कोमा में चला गया है। दरअसल दवा कंपनियां मूल्य नियंत्रण और दवा उत्पादन को लेकर सरकार के मंत्रियों और सत्तारुढ़ राजनीतिक दल को करोड़ों रुपए का चंदा देकर दवा के मूल्य निर्धारित कराती हैं।
चुनावी चंदे के रूप में इलेक्टोरल बांड के माध्यम से दवा कंपनियों द्वारा करोड़ों रुपए का चंदा दिए जाने की बात पहले ही उजागर हो चुकी है। पिछले एक दशक से केंद्र एवं राज्य सरकारों के स्वास्थ्य और विभागों की हालत बेहद खस्ता है। जनसंख्या बढ़ने, अस्पताल बढ़ने, केमिस्टों की संख्या बढ़ने के साथ ही दवा निर्माताओं की संख्या कई गुना बढ़ गई है।
केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा इस कारोबार को नियंत्रित करने के लिए तथा गुणवत्ता बनाए रखने, लोगों, के जीवन को सुरक्षित करने के लिए जो कार्य करना चाहिए था, वह नहीं किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग में नई नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। जो अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत हो गए हैं, उनके पद रिक्त पड़े हुए हैं। दवाइयों की जांच का जिम्मा इंस्पेक्टर और ड्रग कंट्रोलर का है।
जो काम स्वास्थ्य विभाग को करना चाहिए, वह नहीं हो रहा है। ड्रग इंस्पेक्टर्स की संख्या लगातार घटती चली जा रही है। जब भी कोई घटना होती है उसके बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकारें बड़े-बड़े दावे जरूर करती हैं, लेकिन दावों का हकीकत से कोई लेना-देना नहीं होता है।
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