काकोरी कांड के सौ साल पूरे
मेरठ के वैश्नाथालय की एक कोठरी में रची गयी थी कांड की पटकथा
मेरठ । आज पूरा देश काकोरी कांड के शहीदों को याद रहा है उनके वंशजों को सम्मानित किया जा रहा है। क्या आप जानते है इस कांड की पटकथा कहा लिखी गयी थी। जानिए
बता दें 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के क्रांतिकारियों ने लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर डकैती को अंजाम दिया था। इसमें चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और अन्य क्रांतिकारियों के साथ राम प्रसाद बिस्मिल ने 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन से ब्रिटिश खजाने को लूट लिया. जिससे तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत हिल गयी थी। अंग्रेजों के लूट के धन का उपयोग हथियार खरीदने और क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए किया जाना था। इस कांड ने ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं थीं। क्योंकि यह न केवल एक आर्थिक चोट थी, बल्कि उनकी सत्ता के खिलाफ खुली बगावत थी।
काकोरी कांड के सूत्रधार विष्णु शरण दुबलिश भी मेरठ के थे
इतिहासकार केके शर्मा ने बताया कि काकोरी कांड के सूत्रधार विष्णु शरण दुबलिश मेरठ के थे। काकोरी कांड की योजना विष्णु शरण दुबलिश समेत शाहजहांपुर के क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के अलावा अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के नेतृत्व में बनाई गई थी। विष्णु शरण दुबलिश को आठ वर्ष काला पानी सहित 18 वर्ष कैद हुई। उस समय शिवाजी रोड़ वैश्नाथालय था। जिसमें विष्णु शरण दुबलिश प्रबंधक हुआ करते थे। देश को आजाद कराने के लिए वैश्नाथालय में बैठक हुआ करती थी। काकोरी कांड को अंजाम देने के लिए अनाथालय के पीछे दो कमरों में बकायदा क्रांतिकारियों की बैठक हुई थी। जिसके बाद कांड को अंजाम दिया गया। वर्तमान में अनाथालय में उन कमरों के स्थान पर पक्षियों को दाना डाला जाता है। उस समय का पीपल का पेड़ भी आज अनाथालय के अंदर मौजूद है।
दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला के बाद विष्णु शरण दुबलिश थे जिन्हें 18 साल जेल में गुजारे
जहां दक्षिण अफ्रीका के नेता नेल्सन मंडेला ने देश को आजादी दिलाने के लिए 29 साल सलाखों के पीछे गुजारने पड़े वही मेरठ के विष्णु शरण दुबलिश को देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए 18 साल जेल में गुजारने पड़े ।
अंग्रेजों ने विष्णु शरण को दी थी कालापानी की सजा
विष्णु शरण दुबलिश के पौत्र डॉक्टर प्रवीण दुबलिश ने बताया कि उन्हें गर्व है कि वे ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी के वंशज हैं। उन्होंने बताया कि उनके दादाजी ने काकोरी में क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जिस वक्त अपना जोश दिखाया था, उस समय वह महज 18 वर्ष के थे। अंग्रेजी ने उन्हें काला पानी की सजा दी थी. अपने प्राणों की आहुति तक अपनी क्रांतिकारी नहीं छोड़।
शुक्रवार को लखनऊ में सम्मानित किए गये प्रवीण दुबलिश ने बताया आज का युवा जागरूक है, पढ़ा लिखा है, लेकिन सिर्फ झंडा फहराना, भारत माता की जय बोलना, जयहिंद बोलना ही देशभक्ति नहीं है, बल्कि अगर हम जो कर्तव्य निभा रहे हैं उसे ईमानदारी से ढंग से पूरा करते हैं तो वह भी देशभक्ति है।
चौधरी चरण सिंह ने विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर विजय प्रताप सिंह ने बताया कि आजादी हमें बहुत संघर्षों के बाद मिली है और इसमें युवाओं का बहुत योगदान रहा है. सभी धर्म के लोगों का इसमें योगदान रहा है। हमें अपने क्रांतिकारी की शहादत को नहीं भूलना चाहिए और भारत को मजबूत सशक्त बनाने के लिए योजना बनाएं ,आगे बढ़ें।
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