दरकते संबंध
इलमा अज़ीम
भौतिकतावाद की अंधी दौड़, सोशल मीडिया की दिखावटी दुनिया और आधुनिकता की अंधाधुंध नकल ने नई पीढ़ी को उलझन, असंतोष और अधीरता के जाल में फंसा दिया है। धन और संपत्ति की चाह इतनी हावी हो चुकी है कि खून के रिश्तों की पवित्रता तक दांव पर लगाई जा रही है। कहीं पुत्र ने पिता को मार दिया तो कहीं भाई ने भाई की हत्या कर दी।
इन घटनाओं में एक पैटर्न साफ दिखता है और वह है, शराब और नशे की लत, जमीन-जायदाद की लालसा और व्यक्तिगत स्वार्थ से उपजा असंतोष। आज ये सब मिलकर पारिवारिक ताने-बाने को तहस-नहस कर रहे हैं। समस्या केवल संपत्ति विवाद की नहीं है, बल्कि यह एक गहरे सामाजिक पतन की निशानी है। आज अहंकार और ‘ईगो’ के चलते बच्चों और बुजुर्गों के बीच दूरी बढ़ रही है। युवा घर से दूर रहना पसंद कर रहे हैं, और चिट्टा जैसे नशीले जहर के आदी हो रहे हैं। नशे की लत उन्हें चोरी, लूट और हत्या जैसे जघन्य अपराधों की ओर धकेल रही है। इसके पीछे एक बड़ा कारण हमारी परवरिश की शैली में आया बदलाव है।
हम बच्चों को सिर पर बिठाते हैं, उन्हें हर अनुशासन से मुक्त रखते हैं और स्कूल में शिक्षकों को अनुशासन लागू करने से रोकते हैं। नतीजा यह होता है कि वे न जिम्मेदारी सीखते हैं, न संयम। जब वे जीवन की कठोर परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो असफलता और असंतोष उन्हें हिंसा और अपराध की ओर धकेल देता है।
इन परिस्थितियों में बदलाव लाने के लिए समाज के सजग नागरिकों को आगे आना होगा। दुर्भाग्य से आज का समाज इर्ष्या, द्वेष, घृणा, क्रोध और अहंकार की आग में झुलस रहा है। इस आग को शांत करने के लिए हमें शांति, प्रेम, धैर्य और करुणा जैसे गुणों को जीवन में उतारना होगा।हमारे लिए यह समय आत्ममंथन का है, क्या हम अपने बच्चों को सही संस्कार दे रहे हैं? क्या हम उन्हें नैतिकता और संयम सिखा रहे हैं या केवल भौतिक सफलता की होड़ में धकेल रहे हैं?
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