वक्त का तकाजा

 इलमा अज़ीम 

विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर हम एक ऐसे भारत की कल्पना करें जहां हर व्यक्ति को बेहतरीन जीवनशैली की सुविधाएं, उत्तम स्वास्थ्य सेवाएं, श्रेष्ठ शिक्षा उपलब्ध हो, जहां मानवीय अधिकारों का सम्मान हो और राष्ट्र का सतत एवं सर्वांगीण विकास हो। यह वक्त का तकाजा है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें जनसंख्या वृद्धि से पैदा हो रही चुनौतियों से निपटने के लिए एक सर्व स्वीकार्य कार्यक्रम सामने लेकर आएं ताकि भारतीय लोग परिवार नियोजन को स्वेच्छा से अपनाकर देश को आने वाली पीढिय़ों के लिए रहने लायक बनाने की दिशा में अपना योगदान दे सकें। 
सही तरीके से गर्भनिरोधक उपायों, गर्भपात, बंध्यीकरण, एकल बच्चा पैदा करने की नीति और परिवार नियोजन आदि उपायों से ही जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है। ऐसा अनुमान है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण नई पीढ़ी को भविष्य में बुनियादी जरूरतों और सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ेगा। आज भी भारतीयों को बेरोजगारी, स्वास्थ्य संकट, भुखमरी, चिकित्सा सुविधाओं, कुपोषण, स्वच्छ पेयजल की कमी, अच्छी शिक्षा, बिजली-पानी के संकट और गरीबी से बुरी तरह से जूझना पड़ रहा है। 


बढ़ती जनसंख्या के कारण बेरोजगारी में वृद्धि, प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव, शहरीकरण और झुग्गियों का विस्तार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी समस्याओं में भी इजाफा हो रहा है। इसके अलावा ग्रामीण आवास की समस्या, गंदा पानी और कूड़ा कचरा जैसी समस्याएं अलग से मुंह बाए खड़ी हैं।


 यदि समय रहते सरकारों ने आने वाली पीढिय़ों को सुंदर एवं सुखी जीवन देने के लिए अभी से प्रयास शुरू नहीं किए तो भविष्य में भावी पीढिय़ों के समक्ष आपसी संघर्ष की परिस्थितियां निर्मित होना तय है। इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण के अभाव में देश की आर्थिक स्थिति बिगडऩे से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

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