वो खौफ...

वो खौफ
जिसने देखा था
मौत का मंजर
इतनी जल्दी
निष्प्रभ हो गया
इसे ही कहते हैं
संसार का सच
जिंदगी का जुनून
पागलपन इंसान का
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वो घाटी
जिसमें बिखरे थे
यहाँ वहाँ खून के छींटे
कुछ दिन मायूस रह
फिर से मुस्कराने लगी है
जिंदगी की चिड़िया
पंख फड़फड़ाने लगी है
उड़ना चाहती है
पिछला सबकुछ भूलकर
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- व्यग्र पाण्डे
 (कवि/लेखक) कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी (राजस्थान)।


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