आखिर चूक किसकी

    इलमा अज़ीम 

 गाजियाबाद में फर्जी दूतावास का भंडाफोड़ चौंकाने वाली घटना है। फर्जी काल सेंटर, फर्जी आधार केंद्र और वीजा दिलाने वाले फर्जी केंद्रों के मामले तो सामने आते रहे हैं, लेकिन फर्जी दूतावास के खुलासे से कई सवाल खड़े हो गए हैं। ये सवाल तब और गंभीर हो जाते हैं, जब राजधानी दिल्ली से महज चंद किलोमीटर की दूरी पर इस तरह का गोरखधंधा चल रहा हो।
 यह मामला न केवल धोखाधड़ी और जालसाजी का है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है। सवाल है कि आखिर य सब होने देने में चूक किसकी है। राज्य पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने इस मामले में मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर जो खुलासे किए हैं, उनसे सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभालने वाली एजेंसियां भी कठघरे में हैं। एक आलीशान भवन में किसी देश का फर्जी दूतावास होने की भनक किसी को पहले क्यों नहीं लगी? आरोपी इस भवन के बाहर नकली राजनयिक नंबर प्लेट वाली महंगी कारें खड़ी करके रखता था, ताकि वहां आने वाले लोगों को यह दूतावास जैसा ही लगे। जांच के दौरान कई नकली नंबर प्लेट भी मौके से बरामद की गई हैं। एटीएस ने गाजियाबाद के कविनगर में छापा मार कर इस फर्जी दूतावास का पर्दाफाश किया। आरोपी ने किराए पर यह भवन ले रखा था, जहां वह फर्जी तरीके से पश्चिम आर्कटिक का दूतावास संचालित कर रहा था। 

वह खुद को सेबोर्गा, पुलविया और लोडोनिया का राजदूत भी बताता था। आरोपी इस फर्जी दूतावास के जरिए विदेश में काम दिलाने के नाम पर लोगों से मोटी रकम वसूलता था। हैरत की बात है कि वह लोगों को गुमराह करने के लिए प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ अपनी तस्वीरों का भी इस्तेमाल करता था। इन तस्वीरों को उसने इंटरनेट पर छेड़छाड़ करके तैयार किया था।



 इससे इस बात का भी पता चलता है कि इंटरनेट का दुरुपयोग धोखाधड़ी और आपराधिक गतिविधियों के लिए किस हद तक किया जा सकता है। गौर करने की बात है कि इससे पूर्व वर्ष 2011 में इस आरोपी से एक अवैध सैटेलाइट फोन बरामद हुआ था और इस संबंध में स्थानीय थाने में मामला दर्ज किया गया था। यानी वह पहले से ही आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहा है। जिस इलाके में वह फर्जी दूतावास चल रहा था, वहां पुलिस गश्त भी होती ही होगी। इस भवन के बाहर कोई सुरक्षाकर्मी भी तैनात नहीं था। 



ऐसे में सवाल है कि पुलिस को वहां संदिग्ध गतिविधियों को लेकर संदेह पहले क्यों नहीं हुआ ? जांच एजेंसी का दावा है कि आरोपी मुखौटा कंपनियों के माध्यम से हवाला गिरोह भी चला रहा था। ऐसे में इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उसके तार किसी विदेशी खुफिया एजंसी से जुड़े हों। गंभीर बात यह है कि आरोपी पूर्व में अंतरराष्ट्रीय हथियार सौदागर चंद्रास्वामी और अदनान खगोशी के संपर्क में भी रह चुका था। उसके पास से दो देशों के बारह राजनयिक पासपोर्ट और विदेश मंत्रालय की मुहर लगे कूटरचित दस्तावेज का मिलना बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से यह संवदेनशील पहलू है, जिसकी गहराई से जांच की जरूरत है।

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