इतिहास से छेड़छाड़

 इलमा अज़ीम 

एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की नई किताब में दिल्ली सल्तनत और मुगल शासन काल की नयी तस्वीर पेश की गई है। इसके जरिए विद्यार्थियों को समझाया जा रहा है कि यह इतिहास का अंधेरा दौर था। किताब में बाकायदा एक अस्वीकरण यानी डिस्क्लेमर दिया गया है, जिसमें लिखा है कि 'इतिहास के अंधेरे दौर' के लिए आज किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। यह अस्वीकरण काफी अहमकाना लगता है, क्योंकि इतिहास और वह भी सदियों पुराने इतिहास के लिए तो यूं भी किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जो कुछ अतीत में घटा है, उसका तार्किक विश्लेषण करना, और गलतियों को न दोहराने का सबक लेना, इस मकसद के साथ इतिहास का पाठ किया जाना चाहिए।
 यह तभी हो सकता है जब इतिहास को संतुलित और संवेदनशील तरीके से पढ़ाया जाए। दरअसल, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने नए पाठ्यक्रम में 8वीं कक्षा के छात्र के लिए ‘सामाजिक विज्ञान’ की ऐसी ही किताब प्रकाशित की है। किताब के आरंभ में ‘इतिहास के कुछ अंधकारमय काल पर टिप्पणी’ शीर्षक वाला एक खंड दिया गया है। उसमें संवेदनशील और क्रूर हिंसा की घटनाएं संकलित की गई हैं। एक विशेष नोट के जरिए छात्रों से आग्रह किया गया है कि वे निर्दयी हिंसा, अपमानजनक कुशासन या सत्ता की गलत महत्वाकांक्षाओं के ऐतिहासिक मूल को निष्पक्षता से समझें। आग्रह यह भी किया गया है कि उस कालखंड की घटनाओं को आज के परिदृश्य में न देखें। 8वीं कक्षा का छात्र एकदम कच्चे, निष्कपट, निश्छल मानस का होता है। उसे जिस तरह का इतिहास पढ़ाया जाएगा, उसके मुताबिक ही उसके पूर्वाग्रह बनेंगे। 



उसके भीतर निर्दयी, हिंसक, हत्यारे आक्रांताओं के प्रति नफरत और अस्वीकृति के भाव उमडऩा स्वाभाविक हैं। वामपंथी ऐसे इतिहास और सोच को ‘सांप्रदायिक’ करार दे रहे हैं। हमारा चिंतित और बुनियादी सवाल यह है कि 500-700 साल पुराना इतिहास, 21वीं सदी के भारतीय छात्र को पढ़ाना, क्या उचित और प्रासंगिक है? ‘अंधकारमय काल’ भी कहा जा रहा है और फिर मारने-काटने, मंदिर-मठों के विध्वंस, गुरुद्वारों को जमींदोज करने, हिंसक व्यवहार और एक पूरी आबादी के कत्लेआम का ‘काला इतिहास’ भी पढ़ाया जा रहा है!
 इस अंधबुद्धि विरोधाभास से भारत में क्या ऐसी प्रतिभाएं पैदा हो सकती हैं, जो चंद्रमा और अंतरिक्ष तक जाने की महत्वाकांक्षाएं रखती हों? क्या काबिल इंजीनियर, वैज्ञानिक, डॉक्टर, अर्थशास्त्री बनाए जा सकते हैं? नफरती जमात जरूर पैदा हो सकती है, जो देश को दोफाड़ ही रख सकती है। मुगल-काल कई सदियों पुराना अतीत हो चुका है।


 हम बाबर, अकबर, औरंगजेब के क्रूर इतिहास से आज तक मुक्त नहीं हो पाए हैं! यदि वह ‘अंधकारमय काल’ था, तो उसे अंधेरों में ही क्यों नहीं धकेला जा सकता? एनसीईआरटी की इसी सप्ताह प्रकाशित पुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी : इंडिया एंड बियॉन्ड’ छात्रों को बीती सदियों की दिल्ली सल्तनत, मुगलों, मराठों और औपनिवेशिक युग से परिचित कराती है। किताब में बाबर, अकबर, औरंगजेब सरीखे मुगल बादशाहों को निर्दयी, क्रूर, सनातन-विरोधी और इस्लामिक देश बनाने के मंसूबेदार आदि करार दिया गया है। यदि इतिहास को नए सिरे से लिखवाना है, तो पाठ्यक्रम में उन शूरवीरों, आजादी के रणबांकुरों, क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां रखनी चाहिए थीं, जिन्होंने गुलाम, औपनिवेशिक देश को ‘स्वतंत्र भारत’ बनाने में संघर्ष किए, बलिदान दिए।

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