जल संकट की आहट

इलमा अज़ीम 

ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे कारकों से दुनियाभर में ग्लेशियरों का पिघलना भविष्य में गंभीर जल संकट ला सकता है वहीं इससे प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी हैं। अंटार्कटिका, आर्कटिक, ग्रीनलैंड, आइसलैंड, हिंदूकुश, स्विट्ज़रलैंड या ब्रिटेन- सभी क्षेत्रों में यही स्थिति है। दुनियाभर के ग्लेशियर खत्म होने की कगार पर हैं। वे तेजी से पिघल रहे हैं। अगर इनके पिघलने की यही रफ्तार जारी रही तो आने वाले दशकों में दुनिया एक-एक बूंद पानी को तरस जायेगी।
 दरअसल, जलवायु की प्रचंड आंधी ग्लेशियरों को निगल रही है। यह केवल बर्फ का पिघलना नहीं है; इससे बाढ़, भूस्खलन और हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ता है, साथ ही यह बुनियादी ढांचे, कृषि उत्पादन और जलीय-स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। वैज्ञानिकों की मानें तो साल 2000 से 2023 के बीच बर्फ के ये पहाड़ यानी ग्लेशियर 650,000 करोड़ टन बर्फ खो चुके हैं। यह सिलसिला जारी है। जलवायु बदलाव और स्थलाकृति के कारण मध्य हिमालय का एक ग्लेशियर तेजी से खिसक रहा है। ग्लेशियरों की चिंताओं के बीच यह नया संकट है। दरअसल, ग्लेशियर आगे की ओर खिसकने की घटनाएं अभी तक अलास्का, कराकोरम और नेपाल में सामने आती थीं।


 वैज्ञानिक इसमें ग्लोबल वार्मिंग, तापीय इफेक्ट और उस इलाके की टोपोग्राफी को मुख्य वजह मान रहे हैं। वैज्ञानिक इस ग्लेशियर का उद्गम भारत में और निकास तिब्बत की ओर मानते हैं। इससे तिब्बत से लेकर धौलीगंगा तक बाढ़ का खतरा बना हुआ है। ग्लेशियर में इस बदलाव की स्थिति निचले इलाकों के लिए खतरनाक हैं।



 ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक स्तर पर मौजूद ग्लेशियरों को नुक़सान पहुंचा रही है। वह हिमालयी क्षेत्र में 37,465 वर्ग किलोमीटर में फैले कुल 9575 ग्लेशियरों को भी अपनी चपेट में ले चुकी है। यूनेस्को ने भी चेताया है कि ग्लेशियरों के पिघलने की यदि मौजूदा दर बनी रही तो इसके परिणाम अभूतपूर्व और विनाशकारी हाे सकते हैं।

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