पहाड़ों के अनुरूप हो विकास
इलमा अज़ीम  इस साल की मानसूनी बारिश में हिमाचल के मंडी जिले में बादल फटने की घटनाओं ने बुनियादी ढांचे, घरों,सड़कों और बगीचों को जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है, उसने पहाड़ों में विकास के स्वरूप को लेकर फिर नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। 
राज्य के तमाम महत्वपूर्ण राजमार्ग भूस्खलन और अतिवृष्टि से बाधित रहे हैं। कांगड़ा घाटी में ऐतिहासिक रेल परिवहन को स्थगित करना पड़ा है। शिमला के पास एक बहुमंजिला इमारत के भरभरा कर गिरने के सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो ने भयभीत किया। यहां ढली इलाके में कई इमारतें गंभीर खतरे की जद में आ चुकी हैं। निश्चय ही मौसम के मिजाज में तल्खी नजर आ रही है लेकिन इस संकट के मूल में कहीं न कहीं अवैज्ञानिक विकास, खराब आपदा प्रबंधन और निर्माण में पारिस्थितिकीय ज्ञान की उपेक्षा भी निहित है। जिसने इस संकट को और अधिक बढ़ाया है। 



वास्तव, में हिमाचल व उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में अतिवृष्टि से आपदा का जो भयावह मंजर उभर रहा है, उसके मूल में सिर्फ जलवायु परिवर्तन ही मुख्य कारक नहीं है। दरअसल, इस तबाही के मूल में हमारी नाजुक हिमालयी पारिस्थिकीय तंत्र के प्रति बड़ी लापरवाही भी है। विकास के नाम पर हमने पहाड़ों को काटकर चौड़ी सड़कें बना दी और इससे लगते पहाड़ों की जड़ें खोखली कर दी,जिससे भूस्खलन की गति अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है। इस तथाकथित विकास के नाम पर हमने उन सीढ़ीनुमा रास्तों को दरकिनार कर दिया, जो पहाड़ों को मजबूती देते थे। 
इस तरह हमने परंपरागत हल्की छत वाले घरों के बजाय भारी-भरकम कंक्रीट की छतों वाले घरों को प्राथमिकता दी है। हिमाचल में लाहौल-स्पीति को जोड़ने वाली अटल सुरंग इंजीनियरिंग का चमत्कार हो सकती है, लेकिन इसके अवरोध के बाद पुरानी रोहतांग दर्रा सड़क पर वापसी साबित करती है कि आपातकालीन योजना ने बुनियादी ढांचे के विस्तार के साथ तालमेल नहीं रखा है। इसी तरह कांगड़ा घाटी में रेल यात्रा में व्यवधान विरासत के बुनियादी ढांचे के प्रति आधिकारिक उदासीनता को ही दर्शाता है। 


यह रेलवे लाइन अभी दूर-दराज के इलाकों के लिये जीवन रेखा जैसी ही है। शिमला के ढली के पास खराब निर्माण और लापरवाही ने कई इमारतों और लोगों के जीवन को संकट में डाल दिया है। जो हमारे अवैज्ञानिक विकास की कीमत चुका रहे हैं। दरअसल, हमें अतीत की आपदाओं से सबक लेकर भविष्य की विकास योजनाओं की रूपरेखा तैयार करनी होगी। पहाड़ों की संवेदनशीलता को देखते हुए नये सिरे से निर्माण के मानक तय करने होंगे। 

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