बाढज़नित हादसे

  इलमा अज़ीम 
   हर साल मानूसन के दौरान देश में बाढ़ जनित हादसों में सैकड़ों लोगों की मौत होती है। भारी बारिश से देश को अरबों रुपयों की सम्पत्ति का नुकसान होता है। जन-धन की इस हानि के लिए किसी की जिम्मेदारी तय नहीं है। आखिर कौन हर साल होने वाले ऐसे हादसों के लिए जिम्मेदार है। हादसा होने के बाद सिर्फ लकीर पीटी जाती है। ऐसे उपाय नहीं किए जाते कि हादसों की पुनरावृत्ति नहीं हो, या फिर इनकी संख्या में कमी लाई जा सके। 
भारत में बाढ़ से हर साल औसतन 1600 लोगों की मौत हो जाती है। वर्ष 2022 में, बाढ़ के कारण 547 मौतें हुईं। साल 2023 में, उत्तर भारत में बाढ़ के कारण कम से कम 60 लोगों की मौत की पुष्टि हुई। अभी जारी मानसून में पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ और भूस्खलन के कारण 40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान में तेजी से वृद्धि हुई है। कुछ बड़ी घटनाओं में 2005 में मुंबई, 2013 में उत्तराखंड, 2014 में जम्मू और कश्मीर, 2015 में चेन्नई और 2018 में केरल की बाढ़ शामिल हैं। साल 2023 में उत्तर भारत की बाढ़ ने भी एक अरब डॉलर से अधिक का नुकसान पहुंचाया। नुकसान में वृद्धि के कई कारण हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन प्रमुख है।


 बढ़ते तापमान से चक्रवात, बाढ़ और सूखे जैसी घटनाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ी है। इसके अलावा संवेदनशील क्षेत्रों में बढ़ता निर्माण और आबादी आपदा के समय अधिक नुकसान का कारण बनते हैं। बाढ़ जैसी आपदाओं से सडक़ों, पुलों और सार्वजनिक उपयोगिताओं जैसे बुनियादी ढांचे को भी भारी नुकसान होता है। इससे न केवल आर्थिक गतिविधियां बाधित होती हैं बल्कि यह लोगों की जिंदगी को भी प्रभावित करता है। कुदरती आपदाओं के कारण ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में घरों का बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। इससे हजारों लोग बेघर हो जाते हैं और फिर से निर्माण में भारी खर्च आता है।हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी क्षेत्र भूकंप और भूस्खलन के लिए संवेदनशील हैं। साथ ही मुंबई, चेन्नई और दिल्ली जैसे बड़े शहर बाढ़ और जलभराव के लिए अधिक संवेदनशील हैं। 


वर्ष 2005 की मुंबई बाढ़ और 2015 की चेन्नई बाढ़ भारत की सबसे महंगी प्राकृतिक आपदाओं में से हैं। इनसे क्रमश: 5.3 अरब डॉलर और 6.6 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इन घटनाओं से स्पष्ट है कि बेहतर योजना और आपदा प्रबंधन की सख्त जरूरत है। सवाल यह है कि आखिर देश के लोग बाढज़नित आपदाओं की मार कब तक झेलते रहेंगे। हर साल होने वाली मौतें और हजारों करोड़ की सम्पत्ति की बर्बादी आखिर कब थमेगी। सिर्फ प्रकृति को दोष देेने से जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। लापरवाही और बहानेबाजी का यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा, जब तक सजा का कठोर प्रावधान नहीं होगा।

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