भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी उज्ज्वल?

- डा. वरिंदर भाटिया
जब हम जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करते हैं, तो हमें यह सेक्टर-वाइज देखना चाहिए- जैसे कृषि में कितनी वृद्धि हुई, मैन्युफैक्चरिंग में कितना विकास हुआ। इससे यह साफ होता है कि क्या यह आर्थिक प्रगति सभी तक समान रूप से पहुंच रही है या केवल कुछ सीमित क्षेत्रों में ही सिमट कर रह गई है। बेरोजगारी को लेकर हमारा मानना है कि देश में बेरोजगारी उतनी ज्यादा नहीं है। समस्या यह है कि ज्यादातर युवाओं के लिए नौकरी का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी है। अगर नजरिया यही रहेगा, तो फिर नौकरियां सीमित होंगी। 20-25 साल की उम्र से लेकर 30-35 साल तक सरकारी नौकरी का इंतजार ठीक नहीं…

ताजा खबरों के अनुसार भारत जापान को पीछे छोडक़र दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि आज भारत की अर्थव्यवस्था जापान से बड़ी है। इसी कड़ी में आरबीआई ने अपनी ताजातरीन रिपोर्ट जारी करते हुए और इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता और टैरिफ वॉर के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती के साथ न सिर्फ खड़ी है बल्कि अप्रैल के महीने में औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की गति तेज रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अप्रैल 2025 के पूर्वानुमान का हवाला देते हुए आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस साल तेज रफ्तार से आगे बढ़ेगी और जापान को पछाड़ते हुए दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था बन सकती है। नीतिगत बदलावों की वजह से वैश्विक स्तर पर अनिश्चितताओं के बावजूद भारत का रुझान सकारात्मक बना हुआ है। साथ ही रबी फसल की बंपर पैदावार और मॉनसून से सामान्य से अधिक रहने की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोग में इजाफा दिख सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वैश्विक व्यापार के बदलने और औद्योगिक नीतियों में बदलाव की वजह से भारत इन देशों के बीच कनेक्टर देश के तौर पर काम कर सकता है, खासकर प्रौद्योगिकी, डिजिटल सेवाएं और फार्मास्युटिकल्स इनमें प्रमुख है। आगे चलकर, भले ही कई गंभीर चुनौतियां नजर आ रही हों, भारत वर्तमान वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों का आत्मविश्वास के साथ सामना करने के लिए अच्छी स्थिति में है। अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अगले छह से सात वर्षों में यानी 2030 तक 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगी। भारतीय अर्थव्यवस्था का 7 फीसदी या उससे अधिक बढऩा संभव है।



हालांकि, इसने भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने चार चुनौतियां भी पेश की हैं। इनमें सेवा क्षेत्र के लिए एआई का खतरा, एनर्जी सिक्योरिटी और आर्थिक विकास के बीच समझौता और स्किल वर्कफोर्स की उपलब्धता शामिल है। सेवा क्षेत्र के रोजगार पर संभावित प्रभाव के कारण एआई का आगमन दुनिया भर की सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह भारत के लिए विशेष रुचि का विषय है क्योंकि सेवा क्षेत्र भारत की जीडीपी में 50 फीसदी से अधिक का योगदान देता है। हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद भारत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान तेज रहेगा और 7 फीसदी या उससे अधिक बढऩे की उम्मीद है। कुछ विश्लेषकों ने वित्त वर्ष 25 के दौरान भी इसी तरह की विकास गति का अनुमान लगाया है। महिला कार्य बल भागीदारी दर 2017-18 में 23.3 फीसदी से बढक़र 2022-23 में 37 फीसदी हो गई, जो भारत में महिला नेतृत्व वाले विकास की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव को दिखाती है। इस बीच शैक्षिक क्षेत्र, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में सरकार द्वारा दशकीय सुधार किए गए, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में सुधार, श्रम बल बाजार में लैंगिक समानता में सुधार, सरकार द्वारा पूंजीगत खर्च को बढ़ावा, बुनियादी ढांचे के विकास, राजकोषीय संतुलन को बनाए रखना, अर्थव्यवस्था का औपचारिकीकरण और जीएसटी सुधार, भुगतान का डिजिटलीकरण, दिवाला और दिवालियापन कोड में सुधार कुछ नीतिगत हस्तक्षेप हैं, जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास की गति बनाए रखने में मदद की है। हमें निवेश खर्च में वृद्धि, उत्पादकता में सुधार, स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार, अधिक नौकरियां पैदा करना और लैंगिक समानता में सुधार, कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि, व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखना, वैश्विक रुझानों का प्रबंधन, महिलाओं के लिए नए रोजगार के अवसरों का निर्माण और शासन में सुधार करना होगा, जिससे अगले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था 7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगी। इस घोषणा के बाद जहां कुछ अर्थशास्त्रियों ने इसकी सराहना की, वहीं कई विशेषज्ञों ने इस दावे पर सवाल भी उठाए।

हर बार जब इस तरह के आंकड़े सामने आते हैं, तो आम लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठता है कि क्या इस आर्थिक तरक्की का असर उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर भी पड़ा है? अगर एक परिवार में एक व्यक्ति पांच लाख रुपए कमा रहा है और दूसरे परिवार में चार लोग मिलकर पांच लाख कमा रहे हैं, तो सिर्फ आमदनी देखकर यह कहना कि दोनों बराबर हैं, गलत होगा, क्योंकि एक परिवार में उस राशि से एक व्यक्ति का खर्च चल रहा है, जबकि दूसरे में चार लोगों का। इसी तरह, देशों की तुलना करते समय भी केवल जीडीपी के आंकड़ों से निष्कर्ष निकालना ठीक नहीं है। जापान और जर्मनी जैसे देशों की जीडीपी की तुलना भारत से करना उचित नहीं है, क्योंकि भारत की जनसंख्या कहीं ज्यादा है। अगर देश में आर्थिक गतिविधियां बढ़ती हैं तो उम्मीद की जाती है कि इसका फायदा सभी वर्गों तक पहुंचेगा। लेकिन इसके दो अहम पहलू हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। पहला सवाल यह है कि आर्थिक गतिविधि किस सेक्टर में हो रही है? अगर निर्माण क्षेत्र (कंस्ट्रक्शन) में विकास हो रहा है, तो निर्माण मजदूरों तक इसका सीधा लाभ पहुंच सकता है। लेकिन अगर यह वृद्धि फाइनेंशियल सेक्टर में हो रही है, तो इसका लाभ सीमित लोगों तक ही रहेगा। और वो पहले से ही ठीक वर्ग के लोग हैं। यह समझना जरूरी है कि देश किन क्षेत्रों में निवेश और विकास पर जोर दे रहा है।



कौन से सेक्टर तेजी से बढ़ रहे हैं और उनका बाकी अर्थव्यवस्था के साथ कितना गहरा जुड़ाव है। जब हम जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करते हैं, तो हमें यह सेक्टर-वाइज देखना चाहिए- जैसे कृषि में कितनी वृद्धि हुई, मैन्युफैक्चरिंग में कितना विकास हुआ। इससे यह साफ होता है कि क्या यह आर्थिक प्रगति सभी तक समान रूप से पहुंच रही है या केवल कुछ सीमित क्षेत्रों में ही सिमट कर रह गई है। बेरोजगारी को लेकर हमारा मानना है कि देश में बेरोजगारी उतनी ज्यादा नहीं है। समस्या यह है कि ज्यादातर युवाओं के लिए नौकरी का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी है। अगर नजरिया यही रहेगा, तो फिर नौकरियां सीमित होंगी और उतनी होनी भी नहीं चाहिए। अगर कोई युवक 20-25 साल की उम्र से लेकर 30-35 साल की उम्र तक सिर्फ सरकारी नौकरी की तैयारी करता रहे और फिर कहे कि वो बेरोजगार है, तो इसमें न आप कुछ कर सकते हैं, न मैं और न ही सरकार। फिर भी हर समस्या का समाधान आर्थिक विकास में ही है। अगर मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगी तो मजदूरों को रोजगार मिलेगा। सबसे जरूरी बात यह है कि कृषि से मैन्युफैक्चरिंग और फिर मैन्युफैक्चरिंग से सर्विस सेक्टर तक जो बदलाव होना है, वो भी इसी ग्रोथ से संभव होगा। इसके लिए और आधी मेहनत करनी होगी। भारत में आय में असमानता बढ़ी है, यह भी एक चुनौती है।

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