मेरी यादों में घूमती साइकल विषय पर वामा साहित्य मंच की संस्मरण गोष्ठी आयोजित
संस्मरण स्मृतियों का उत्सव है - डाॅ. उपाध्याय
इंदौर। साइकिल एक ऐसा वाहन जिससे सबकी बाल्यावस्था की अपनी-अपनी स्मृतियां जुड़ी होती है। साइकिल से जुड़े संस्मरणों को जीवन में भूलाना कठिन है। इन्हीं संस्मरणों को वामा साहित्य मंच की मासिक साहित्य गोष्ठी में लेखिकाओं ने सुनाया।
गोष्ठी का प्रारंभ मधुर सरस्वती वंदना से विभा जैन(ओज्स) ने किया। अध्यक्ष ज्योति जैन ने मुख्य अतिथि श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय सहित सभी वामा सखियों का स्वागत शब्द पुष्पों से करते हुए स्वयं की साइकिल से जुड़ी यादों व चलाने के लाभों से अवगत करवाया। लेखिकाओं ने साइकिल से जुड़े संस्मरणों को सुनाया। उषा गुप्ता ने भाई को रिश्वत देकर साइकिल चलाना सिखाने के लिए मनाया, लेकिन मोटर साइकिल वाले ने टक्कर मारी, डरकर आंखे बंद कर ली पर भाई ने संभाल लिया, लेकिन खुशी से ताली बजाने के चक्कर में गिर गई जिससे चोट लगी और डर के मारे साइकिल चलाने से ही तौबा कर ली। अर्चना मंडलोई ने किराए की साइकिल लेकर चलाना सीखा और स्कूल में सहेलियों के साथ को याद किया उस सवारी को पहले सपने का साकार होने जैसा कहा। नूपुर प्रणय वागळे ने साइकिल का दर्शन और अपने जीवन से जोड़ कर दिखाया। इसे तीन पीढ़ीयों के लिए बनाया वाहन बताया। अपने संस्मरण में साईकिल पर फिल्माए गीत भी गाए। अमिता मराठे कबड्डी की राष्ट्रीय खिलाड़ी रही, 1200 /- की प्राप्त पुरस्कार राशि से 250/- की साइकिल खरीदी, जिस सहेली को हृदय रोग था उसे भी रोज साइकिल पर बैठाकर घर से कालेज ले जाती और छोड़ती थी और उड़न परी बन चलाई।तनुजा चौबे ने जेबखर्च से बचाकर किराए से साइकिल चलाना सीखी, गिरी पर समझ आया जिद्द से मिली आजादी थोड़ी दर्दनाक सही, पर मीठी होती है। शालिनी बड़ोले(रेवा) ने सुनाया कि छोटी सुंदर साइकिल जिसका नाम सुनहले पंखों वाली चिड़िया रखा था लेकिन वह कभी उनकी ना हो पाई। मृदुला शर्मा ने बताया कि हम बहनों को गली के पड़ोसी लड़कों ने साइकिल चलाना सिखाया व इस पर आधारित क्षणिकाएं सुनाई। विभा जैन(ओज्स) सहेली के साथ पैसे इकट्ठे कर किराए से साइकिल लाती और मिलकर चलाती। चलाना सरल था लेकिन रोकना कठिन। पति ने शादी के बाद साइकिल चलाना सिखाया। दामिनी ठाकुर ने पापा की जिद्द से साइकिल चलाना सीखी जो उस समय वह एक क्रन्तिकारी कदम था। वे गांव की पहली लड़की है जिसने साइकल चलाई। तब उन्हें महसूस होता था कि वे कोई राजकुमारी है और साइकिल शाही सवारी हैं। आशा मुंशी ने मुझे जाम चोरी का अपराध स्वीकार करने पर इनाम के रूप में नीली, एक ओर तिरंगा, दूसरी ओर फिरकनी घूमती हुई साइकिल मिली। प्रीति मकवाना ने साइकिल सीखने के बहुत प्रयास किए पर नहीं सीख पाई और गाड़ी पर पीछे बैठने को सही बताते हुए उसे कुंडली में लिखा राजयोग बताया। विनीता शर्मा ने भाई ने बताया साइकिल माता होती है और खून का तिलक मांगती है। जब साइकिल चलाई तो सफाईकर्मी दीदी में ठोकी और सबकी पिटाई खाई और तब से साइकिल को दूर से नमस्कार कर दिया। सभी लेखिकाओं के संस्मरण सुनकर प्रेम, सखाभाव, उत्साह, वात्सल्य, परवाह, गर्व जैसी कई भावनाओं का साक्षात्कार हुआ।
मुख्य अतिथि विद्वान नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने उद्धबोधन में वामा साहित्य मंच को गंगा तीर्थ के समान कहा और लेखिकाओं में सृजन के देवी कहा। संस्मरण स्मृतियों का उत्सव है। संस्मरण में सीमाएं होती है जब वह इससे आगे बढ़ जाती है तो ललित निबंध बन जाते है। साथ ही साइकिल से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभव साझा करते हुए, हर एक के जीवन में महत्वपूर्ण वाहन होने व उससे जुड़े दो चक्रों के दर्शन को बताया। साइकिल में परिक्रमा व गति समाहित है। उन्होंने कहा जिसे इस पर संतुलन बनाना आ गया उसने जीवन में संतुलन बनाने का पड़ाव पार कर लिया।
अतिथि स्वागत व स्मृति चिन्ह भेंट डॉ. रागिनी सिंह व शिरीन भावसार ने किया। संस्मरण गोष्ठी का सुव्यवस्थित संचालन डाॅ. गरिमा संजय दुबे ने किया व समापन पर आभार सचिव स्मृति आदित्य ने माना।
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