इलमा अज़ीम
आज की राजनीति और सोशल मीडिया में कुछ ऐसे लोगों का वर्ग बढ़ता जा रहा है जो बिना सोचे-समझे जो जुबान में आ रहा है, उसे बोल रहे हैं और हैरानी की बात यह है कि उन्हें इन अपशब्दों पर कोई पछतावा नहीं है। एक ऐसा वर्ग जो सभ्यता के नाम पर कलंक है। एक शिक्षित की भाषा मर्यादित होती है। मानव ने पृथ्वी लोक पर इतना विकास कर लिया, फिर भी वह सभ्य और सुसंस्कृत नहीं बन सका तो बहुत ही दुख की बात है। इन लोगों को भगवान का भी डर नहीं है।
जब इनका दिल पुरुष को गाली देकर नहीं भरता, तो वे नीचता की सारी हदें पार करके उनकी मां-बहन या बेटी पर इतने घटिया चरित्रहनन और अश्लील शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं कि बड़े से बड़ा गुंडा भी हैरान रह जाए। स्वर की देवी सरस्वती है तो क्या यह सरस्वती मां का अपमान नहीं है जिनसे हमें स्वर और विद्या का वरदान मिला। जब भारत कोविड-19 महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर से गुजर रहा था, गंगा में सैकड़ों लाशें तैरती देखी गई। बहुत ही भयंकर दौर से देश गुजर रहा था। तब गुजरात की एक संवेदनशील कवयित्री पारुल खक्कर द्वारा गुजराती में लिखी गई कविता : ‘एक साथ सब मुर्दे बोले सब कुछ चंगा-चंगा/राजा तुम्हारे रामराज में शव वाहिनी गंगा।’
इस मूल गुजराती कविता का हिंदी, पंजाबी, बंगाली, मलयालम, अंग्रेजी, यहां तक कि जर्मनी में भी अनुवाद किया गया तो अश्लीलता में माहिर इस वर्ग ने सोशल मीडिया पर अश्लील व्यक्तिगत टिप्पणियां पोस्ट करके उन्हें इतना परेशान किया कि उन्हें अपना फेसबुक प्रोफाइल ब्लॉक करना पड़ा। विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का ऐलान करने के बाद उनको ट्रोलर ने सोशल मीडिया में इतनी गालियां दी और उनके परिवार और यहां तक कि उनकी बेटी पर भी अश्लील संदेशों की बौछार लगा दी। इस सबसे परेशान होकर उन्होंने अपना एक्स अकाउंट प्राइवेट कर दिया।
हिमांशी नरवल शादी के केवल 6 दिन बाद ही पहलगाम नरसंहार में विधवा हो गई थी, उसका दोष यही था कि जब कश्मीर में आतंकवादियों के घरों पर बुलडोजर चलने का समाचार सुना तो उसने शांति की अपील करते हुए कहा कि हमें न्याय चाहिए, पर किसी बेकसूर मुसलमान और कश्मीरी को टारगेट न किया जाए। बस फिर क्या था, गंदगी उगलने वाले गिद्ध की तरह टूट पड़े और उन्हें सोशल मीडिया में जमकर गालियां दी गई। चरित्र पर बहुत ही बेहुदा लांछन लगाए गए।
अपमानजनक शब्द कहना, नारी के चरित्र पर कीचड़ उछालना, बदला लेने के लिए बलात्कार करना, तेजाब फेंकना आदि कुकृत्य इन गिद्धों के लिए साधारण बात है। जब किसी संवेदनशील, सच्चरित्र, शालीन, सभ्य व्यक्ति या नारी पर अश्लील भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसकी पत्नी, बेटी के चरित्र पर कीचड़ उछाला जाता है, तो उन असभ्य जंगली जल्लादों को क्या पता कि वह कितने आहत हुए होंगे, गहरी पीड़ा से कितने बेचैन, व्याकुल और हताश हुए होंगे और जब भी उन्हें उन अपमानजनक शब्दों की याद आती होगी तो पीड़ा से कराह उठते होंगे। यह लोग सोशल मीडिया का इतना गंदा और घिनौना प्रयोग कर रहे हैं कि संवेदनशील व्यक्ति की गरिमा पर चोट पहुंचाना इनका काम है जिसके कारण अनगिनत लोग विवश होकर रह गए हैं, क्योंकि इन दुष्टों पर किसी का कोई अंकुश नहीं है। जमाना बदल रहा है या पतन हो रहा है?
लेखिका एक स्वत्रंत पत्रकार है ये उनके अपने विचार है।
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