- उमेश चतुर्वेदी
साल 2014 के आम चुनावों के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में साल 2022 तक भारतीय किसानों की आय दोगुना करने का वादा किया था। भारतीय कृषि की चुनौतियों को देखते हुए इस लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं। भारतीय किसान मेहनत तो खूब करता है, लेकिन आधुनिकीकरण की कमी, मांग और स्थान के लिहाज से व्यवस्थित आपूर्ति प्रबंधन की कमी और कृषि जोत में लगातार कमी के चलते उसे उसके परिश्रम का वाजिब फल नहीं मिल पाता। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने किसान उत्पादक संगठन की परिकल्पना की, इसके अंग्रेजी शब्दों के पहले अक्षर के नाम पर इसे एफपीओ के नाम से भी जाना जाता है। इस परिकल्पना को प्रधानमंत्री मोदी ने 29 फरवरी 2020 को मूर्त रूप दिया। इस योजना की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे लागू होने के ठीक पांच साल बाद यानी 24 फरवरी 2025 को बिहार के भागलपुर में प्रधानमंत्री ने दस हजारवें एफपीओ की शुरूआत की। बिहार के खगड़िया जिले में पंजीकृत इस एफपीओ का मकसद मक्का, केला और धान की फसल के उत्पादन और उसके विपणन पर है।
बहरहाल एफपीओ योजना के तहत साल 2027-28 तक के लिए सरकार ने छह हजार 865 करोड़ रूपए का प्रावधान किया है। इनकी मदद से एफपीओ को वित्तीय संसाधन मुहैया हुआ। इककी वजह से आज एफपीओ ना सिर्फ किसान संगठन हैं, बल्कि किसानों की आय बढ़ाने और छोटे किसानों को अहम बाजार लाभ, मोल-भाव की ताकत और बाजार तक पहुंच में सुधार की दिशा में सीधी पहुंच मुहैया कराने वाला मंच बन चुका है। इस मंच ने किसानों को सामूहिक सौदेबाजी की ताकत दी है। अब तक के उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से देखें तो देश के पंजीकृत एफपीओ में करीब 30 लाख किसान सीधे जुड़े हुए हैं। जिनमें करीब 40 प्रतिशत महिलाएं हैं। सरकारी समर्थन, बाजार तक सीधी पहुंच और सहकारी प्रयास की वजह से ये एफपीओ कृषि क्षेत्र में अब हजारों करोड़ रुपये का ना सिर्फ सीधे कारोबार कर रहे हैं, बल्कि किसानों की समृद्धि बढ़ाने में भी सहयोगी बने हुए हैं।
सबसे पहले जानते हैं कि किसान उत्पादक संगठन यानी एफपीओ क्या हैं? एफपीओ दरअसल कंपनी अधिनियम के चौदहवें भाग के खंड ए के तहत सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत किसान-उत्पादक संगठन हैं। खेती-किसानी और उससे जुड़ी गतिविधियों और उत्पादन के साथ ही विपणन से फायदा उठाने की कोशिश के तहत इन संगठनों को खड़ा किया गया है। एफपीओ के सदस्य किसान होते हैं, इस लिहाज से कह सकते है कि एफपीओ एक तरह से किसान-सदस्यों द्वारा नियंत्रित उनका अपना स्वैच्छिक संगठन है। इसके सदस्य इसकी नीतियों के निर्माण और उन पर फैसला लेने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इनकी सदस्यता के लिए लिंग, समाज, नस्ल, राजनीतिक या धार्मिक विचार आदि का ध्यान नहीं रखा जाता। इन सदस्यता उन सभी लोगों को मिल सकती है, जो इसकी सेवाओं का उपयोग तो कर ही सकते हैं, सदस्यता की ज़िम्मेदारी को स्वीकार कर सकते हैं। एफपीओ के संचालक अपने किसान-सदस्यों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, प्रबंधकों एवं कर्मचारियों को जरूरी शिक्षा और प्रशिक्षण मुहैया कराते हैं, ताकि वे अपने संगठन के विकास में प्रभावी भूमिका निभा सकें। सहकारी आंदोलन प्रभावी राज्यों मसलन, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि में इन्होंने बेहद उत्साहजनक नतीजे दिखाए हैं।
इस आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी जबरदस्त तरीके से बढ़ रही है। साल 2024 के आंकड़े के अनुसार, इस साल तक रजिस्टर्ड हुए 810 एफपीओ ऐसे रहे, जिनकी प्रत्येक सदस्य सिर्फ महिलाएं हैं। बहरहाल एफपीओ के जरिए किसान अपनी उपज के बदले बेहतर कमाई कर पा रहे हैं। राजस्थान के पाली ज़िले की आदिवासी महिलाओं ने एक उत्पादक कंपनी का गठन किया और इसके माध्यम से उन्हें शरीफा/कस्टर्ड एप्पल के उच्च मूल्य प्राप्त हो रहे हैं।
इन संगठनों के गठन के पीछे की अवधारणा बुनियादी रूप से किसानों के कल्याण पर केंद्रित है। इसके जरिए कृषि उत्पाद तैयार करने वाले किसान अपने लिए समूह बना सकें। शुरू में ही दस हजार संगठनों के गठन का असल मकसद, स्थायी आमदनी केंद्रित खेती-किसान और उत्पादन को बढ़ावा देना और किसानों की आय बढ़ाना है। इस योजना पर साल 2027-28 तक छह हजार 865 करोड़ रुपए के साथ शुरू किया गया था।
सरकार इस योजना की सफलता को लेकर कितनी संजीदा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस योजना के तहत गठित हर नए एफपीओ को पांच साल तक हैंडहोल्डिंग समर्थन के साथ ही उन्हें तीन साल तक प्रबंधन खर्च के लिए 18 लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जा रही है। इसके साथ ही एफपीओ के प्रत्येक सदस्य किसान को दो हजार रुपए का प्रतिभूति अनुदान दिया जाएगा। जिसकी सीमा प्रति एफपीओ 15 लाख रुपये होगी। इसके साथ ही उन्हें संस्थागत ऋण सुनिश्चित करने के लिए हर एफपीओ को दो करोड़ रुपये तक के परियोजना ऋण की गारंटी सुविधा दी जा रही है।
भारतीय किसानों की सबसे बड़ी समस्या उनकी पैदावार को सही जगह और खरीददार तक पहुंचाने के लिए व्यवस्थित प्रबंधन की कमी है। इसके साथ ही भारतीय खेती की जोत लगातार कम होती चली गई है। देश में औसत जोत का आकार साल 1970-71 में जहां 2.3 हेक्टेयर था, वह साल 2015-16 में घटकर महज 1.08 हेक्टेयर रह गया। इसी तरह खेती में छोटे और सीमांत किसानों की हिस्सेदारी साल 1980-81 के 70 प्रतिशत की तुलना बढ़कर साल 2015-16 में 86 फीसद हो गई। दरअसल घटती जोत और बढ़ती किसान हिस्सेदारी के चलते किसानों की आय या तो बढ़ नहीं रही या फिर घट रही हैं। ऐसे में एफपीओ किसानों के लिए बरदान बन कर सामने आए हैं। अब एफपीओ खेती की उपज, उनके बेहतर विपणन और सही जगह पर पहुंच के साथ ही खेती में नवाचार और विकास की दिशा में सहयोगी रूख अपना रहे हैं। इसका असर है कि एफपीओ के जरिए जहां खेती की उपज बढ़ रही है, वहीं किसान वैकल्पिक उपजों के सहारे अपनी आय को बढ़ा रहा है। एफपीओ छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसानों को खेती के दौरान उन्हें प्रौद्योगिकी, गुणवत्तायुक्त बीज, खाद और कीटनाशकों की पहुंच सुनिश्चित करा रहा है। जहां जरूरत होती है, वहां के लिए जरूरी वित्तीय सहयोग भी एफपीओ किसानों को मुहैया करा रहा हैं। इसके जरिए छोटे, सीमांत और भूमिहीन किसान सामूहिक रूप से संगठित हो रहे हैं। एफपीओ खेती की उपज के प्रबंधन, उसमें तकनीक को बढ़ावा देने में भी सहयोगी और प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं।
भारतीय कृषि क्षेत्र में एफपीओ किस तरह अहम भूमिका निभा रहे हैं, इसे समझने के लिए इसे मिलने वाली सहूलियतों की तरफ देखना होगा। एफपीओ को इनपुट जुटाने के लिए कार्यशील पूंजी, विपणन और अपने सदस्य किसानों को बेहतर सेवाएं मुहैया कराने के लिए अनुदान और ऋण दोनों तरह की आर्थिक सहायता दे रहे हैं। एफपीओ को जरूरत पर धन मिल सके, इसके लिए वित्तीय संस्थानों से ऋण के मद में केंद्रीय योजना के तहत ऋण गारंटी निधि का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही देश भर के उपभोक्ताओं को ऑनलाइन उपज बेचने के लिए आठ हजार पंजीकृत किसान उत्पादक संगठनों में से लगभग पांच हजार को ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स यानी ओएनडीसी पोर्टल पर पंजीकृत किया गया है।
एफपीओ के जरिए किसानों को जहां सामूहिक सौदेबाजी की ताकत बढ़ी है, वहीं उन्हें वित्तीय सहयोग मिल रहा है। इस वित्तीय सहयोग से उन्हें वक्त पर तकनीकी सहयोग, जरूरी खाद और कीटनाशक मिल रहा है। इसके साथ ही उन्हें अपनी उपज को खरीददारों तक सीधे पहुंचाने की भी ताक दी है। इस ताकत के चलते किसानों की समृद्धि बढ़ रही है। उम्मीद की जा रही है कि एफपीओ का कारवां अगर इसी तरह बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब भारत के किसान समाज के दूसरे नौकरीपेशा और कारोबारी लोगों की तरह समृद्ध और सहज जीवन जीने के काबिल होंगे। बशर्तें कि एफपीओ का यह कारवां यूं बढ़ता रहे।
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