रजनीगंधा
रजनीगंधा जब हँसे, हँसती सखियाँ संग ।
पारिजात जूही लिली, श्वेत चमेली रंग ।।
श्वेत चमेली रंग, रातरानी मुस्काये ।
रात चाँदनी रूप, और भी मन ललचाये ।।
सोता अलि अनजान, खिलखिलातीं कलियाँ सब।
हो ह्रदय मंत्रमुग्ध, खिले रजनीगंधा जब ।।
रजनीगंधा जब हँसी , लगा बिखरने इत्र ।
धवल प्रभा तन पर गिरी,लगा निखरने चित्र ।।
लगा निखरने चित्र, चित्र रेखा खींचे मन ।
करे जिया मदहोश, बावला चंचल चितवन ।।
किसलय देख ललाम, निकलती तब नव स्कंधा ।
दिशा - दिशा महकाय, हँसे जब रजनीगंधा ।।
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- डिकेश दिवाकर, छत्तीसगढ़।
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