कर्नल सोफिया और विंग कमांडर व्योमिका ने महिलाओं में जगाई उम्मीद की किरण

योगेंद्र योगी 

पहलगाम में पर्यटकों की नृशंस हत्या करने के बदले में भारत की पाकिस्तान पर स्ट्राइक की सफलता की जानकारी देने वाली भारतीय सुरक्षा बलों की दो महिला सैन्य अधिकारियों ने देश में महिलाओं के विपरीत हालात के बीच महिला सशिक्तकरण का सशक्त उदाहरण पेश किया है। देश भर में चर्चित लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिय़ा क़ुरैशी और वायु सेना में विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने साबित कर दिया कि महिलाएं अदम्य साहस के साथ किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। निश्चित तौर पर युद्ध जैसी स्थिति के दौरान इन दोनों सैन्य अधिकारियों ने जिस शानदार तरीके से स्ट्राइक का विवरण पेश किया, उससे न सिर्फ महिलाओं में उत्साह का संचार होगा बल्कि हर मुश्किल हालात से निपटने के लिए साहस का उद्गम होगा।   

पुणे में साल 2016 में आसियान प्लस देशों का बहुराष्ट्रीय फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास फोर्स 18 में 40 सैनिकों की भारतीय सेना की टुकड़ी का नेतृत्व सिग्नल कोर की महिला अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिय़ा क़ुरैशी ने किया था। कुरैशी को बहुराष्ट्रीय अभ्यास में भारतीय सेना के प्रशिक्षण दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बनने का दुर्लभ गौरव हासिल हुआ। गुजरात निवासी सैन्य परिवार से आने वाली सोफिय़ा क़ुरैशी साल 1999 में 17 साल की उम्र में शॉर्ट सर्विस कमीशन के ज़रिए भारतीय सेना में आई थीं। उन्होंने छह साल तक संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भी काम किया। इसमें साल 2006 में कॉन्गो में एक उल्लेखनीय कार्यकाल शामिल है। उस वक़्त उनकी प्रमुख भूमिका शांति अभियान में ट्रेनिंग संबंधित योगदान देने की थी। सोफिया कुरेशी के अलावा ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी की ब्रीफिंग देने वाली विंग कमांडर व्योमिका सिंह दूसरी चर्चित अधिकारी थीं। व्योमिका सिंह भारतीय वायु सेना में हेलीकॉप्टर पायलट हैं। उनके नाम का मतलब ही आसमान से जोडऩे वाला है। नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) की कैडेट रही व्योमिका सिंह ने इंजीनियरिंग की। उन्हें साल 2019 में भारतीय वायुसेना के फ्लाइंग ब्रांच में पायलट के तौर पर परमानेंट कमीशन मिला। व्योमिका सिंह ने 2500 घंटों से ज्य़ादा उड़ान भरी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में मुश्किल हालात में चेतक और चीता जैसे हेलीकॉप्टर उड़ाए हैं। उन्होंने कई बचाव अभियान में भी अहम भूमिका निभाई है। इनमें से एक ऑपरेशन अरुणाचल प्रदेश में नवंबर 2020 हुआ था। इन दोनों महिला सैन्य अधिकारियों ने जिस आत्मविश्वास और दृढ़ता से ऑपरेशन सिंदूर की सफलता की गाथा पेश कि वह न सिर्फ देशवासियों के दिल-दिमाग में अमिट रहेगी बल्कि तमाम बाधाओं के बावजूद महिलाओं में आगे बढऩे की ललक कायम रखेगी। इनके जज्बे ने साबित कर दिया कि महिलाऐ देश में हर क्षेत्र में तरक्की का परचम लहरा रही हैं, चाहे वह क्षेत्र सैन्य जैसा चुनौतीपूर्ण और साहसिक क्षेत्र ही क्यों न हो। देश में महिला सशिक्तकरण की दिशा में इन दोनों महिलाओं का प्रदर्शन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। महिलाओं के सपने पूरा करने में मदद करेगा। देश के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं का अग्रणी प्रदर्शन विकसित बनने की दिशा में अग्रसर भारत की नई तस्वीर पेश करता है।



सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह जैसी देश का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलओं की सफलता की प्रेरणा के बावजूद देश की आम महिलाओं के लिए अभी भी मंजिल आसान नहीं हैं। भारत में पितृसत्तात्मक मानसिकता और लैंगिक असमानता के चलते महिलाओं को विरोधाभासी भूमिकाएँ निभाने के लिए मजबूर किया जाता है। महिलाओं की ताकत को यह सुनिश्चित करने के लिए उभारा जाता है कि वे बेटियों, माताओं, पत्नियों और बहू के रूप में पालन-पोषण करने वाली अपनी पारंपरिक भूमिकाएँ प्रभावी ढंग से निभाएँ। दूसरी ओर, एक "कमज़ोर और असहाय महिला" की रूढि़वादिता को बढ़ावा दिया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे अपने पुरुष समकक्ष पर पूरी तरह से निर्भर हैं।   

भारत में लैंगिक असमानता महिलाओं की वर्तमान स्थिति प्रगति और चल रही चुनौतियों के जटिल अंतर्संबंध से जुड़ी है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की गई हैं। हालाँकि, गहराई से जड़ जमाए हुए सामाजिक मानदंड, आर्थिक असमानताएँ और राजनीतिक चुनौतियाँ यह दर्शाती हैं कि भारत में लैंगिक असमानता अभी भी मौजूद है। विडंबना यह है कि हमारे भारतीय समाज में जहाँ महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है और उन्हें समान अवसर से वंचित रखा जाता है।   

भारत में लैंगिक असमानता अंतर रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, लिंग समानता के मामले में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5, 2019-21) के अनुसार, भारत में कुल लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएँ हैं। हालाँकि, जन्म के समय लिंग अनुपात 929 पर कम बना हुआ है, जो जन्म के समय लिंग चयन जारी रहने का संकेत देता है। भारत के रजिस्ट्रार जनरल मातृ मृत्यु दर रिपोर्ट (एमएमआर) के अनुसार, 2018-20 की अवधि के लिए भारत की एमएमआर 97 प्रति लाख जीवित जन्म है। एनएफएचएस-5 के अनुसार 15-49 वर्ष की आयु की 18.7 प्रतिशत महिलाएँ कम वजन की हैं। 15-49 वर्ष की आयु की 21.2 प्रतिशत महिलाएँ अविकसित हैं और 15-49 वर्ष की आयु की लगभग 53 प्रतिशत महिलाएँ एनीमिया से पीडि़त हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार 20-24 वर्ष की आयु की 23.3 प्रतिशत महिलाएं 18 वर्ष की आयु से पहले विवाहित या विवाहित थीं। एनएफएचएस-5 (2019-21) की रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 प्रतिशत की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर 70.3 प्रतिशत है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की लिंग आधारित हिंसा "भारत में अपराध" 2021 की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए। भारत में लिंगों के बीच वेतन अंतर दुनिया में सबसे ज़्यादा है। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में महिलाओं को औसतन पुरुषों की तुलना में 21 प्रतिशत वेतन मिलता है। पीएलएफएस रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में कामकाजी आयु (15 वर्ष और उससे अधिक) की केवल 32.8 प्रतिशत महिलाएं ही श्रम बल में थीं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार भारत में महिलाओं का 81.8 प्रतिशत रोजगार अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में केंद्रित है। यह दर्शाता है कि भारत में अधिकांश महिला श्रमिक उच्च वेतन वाली नौकरियों में नहीं आ पाती हैं।   



भारत के चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2023 तक राज्य विधानसभाओं में कुल औसत महिला प्रतिनिधित्व सिर्फ 13.9 प्रतिशत है। अप्रैल 2023 के पंचायती राज मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पंचायतों में निर्वाचित प्रतिनिधियों में लगभग 46.94 प्रतिशत महिलाएँ हैं। हालाँकि सरपंच-पति संस्कृति के प्रचलन का मतलब है कि यह आँकड़ा प्रभावी रूप से बहुत कम है। यह निश्चित है कि महिलाओं के उत्थान संबंधी आंकड़े कोई उत्साहवद्र्धक तस्वीर पेश नहीं करते हैं, किन्तु सैन्य अधिकारी सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह जैसी महिलाओं की लिखी सफलता की नई इबारत मौजूदा हालात के बीच तरक्की से वंचित महिलाओं के लिए एक उम्मीद की किरण है।

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)

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