जल संचयन जरूरी

इलमा अज़ीम 
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जल प्रबंधन को लेकर सख्त नीतियां लागू की गई हैं। जैसे कि ‘अमृत मिशन’ में वर्षा जल संचयन को शहरी जल संकट के समाधान का अभिन्न अंग बनाया गया है। अब वर्षा जल संचयन में स्मार्ट तकनीक का प्रयोग होने लगा है। सेंसर-आधारित प्रणालियां, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और डेटा विश्लेषण की मदद से जल स्तर की निगरानी, गुणवत्ता परीक्षण और स्वचालित नियंत्रण संभव हो गया है। उदाहरण के लिए, टंकियों में लगे सेंसर पानी की मात्रा और स्वच्छता के स्तर की जानकारी देते हैं।


 शहरी क्षेत्रों में अब विकेंद्रीकृत वर्षा जल संचयन प्रणालियां लोकप्रिय हो रही हैं, जो एक-एक भवन या समाज स्तर पर काम करती हैं। यह प्रणाली नगरपालिका पर निर्भरता को घटाकर स्थानीय स्तर पर जल संकट का समाधान करती है। ग्रीन बिल्डिंग प्रमाणीकरण और सरकारी प्रोत्साहनों ने इसे और बल दिया है। तमिलनाडु जैसे राज्यों ने सभी भवनों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य कर दिया है, जो अब देश के अन्य हिस्सों में भी लागू किया जा रहा है। तमिलनाडु ने यह पहल 2001 में शुरू की गई थी। इसके अलावा, स्थानीय निकाय करों में छूट और वित्तीय सहायता भी प्रदान करते हैं जिससे इन प्रणालियों की स्थापना को प्रोत्साहन मिलता है। 
दरअसल, भारत का शहरीकरण तीव्र गति से हो रहा है- 2021 में लगभग 500 मिलियन की शहरी आबादी 2031 तक 600 मिलियन तक पहुंचने की संभावना है। शहरी क्षेत्र जहां कंक्रीट का वर्चस्व होता है, वहां वर्षा जल का प्राकृतिक भूजल पुनर्भरण बहुत कम हो पाता है। ऐसी स्थिति में वर्षा जल संचयन एक अनिवार्य आवश्यकता बन गया है।


 दरअसल, इस अभियान की एक प्रमुख चुनौती जनसामान्य में तकनीकी जानकारी और जागरूकता की कमी है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। अनेक लोग इसे जटिल और महंगा मानते हैं, जिससे इसका व्यापक स्तर पर क्रियान्वयन प्रभावित होता है। तकनीकी विशेषज्ञता की कमी, गलत डिज़ाइन और रखरखाव में लापरवाही के कारण कई प्रणालियां विफल हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त, वित्तीय बाधाएं भी हैं। गरीब वर्ग और छोटे किसान इस प्रणाली की लागत वहन नहीं कर पाते, जबकि सरकारी सब्सिडी कई बार पर्याप्त नहीं होती या उन तक पहुंच नहीं पाती। 
 लेखिका एक स्वत्रंत पत्रकार है यह उनके अपने विचार है 

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