पल पल बदलता मौसम
इलमा अज़ीम
दिल्ली और उत्तर भारत में अचानक और तीव्र रूप से बदलता मौसम अब कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं रह गया है बल्कि यह एक चेतावनी है कि यदि हम समय रहते नहीं चेते तो यह बदलाव हमें और अधिक विनाशकारी परिस्थितियों की ओर ले जा सकता है। यह समय है जब नीति निर्धारक, वैज्ञानिक और आमजन एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन की चुनौती का समाधान निकालें। वर्तमान स्थिति में सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और आम नागरिकों के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है।
अब समय आ गया है कि हम जलवायु परिवर्तन को केवल वैज्ञानिक बहस का विषय न मानें बल्कि इसे सार्वजनिक नीति और व्यक्तिगत जीवनशैली में भी प्राथमिकता दें। भारत को अब मौसम विज्ञान, कृषि, जल संरक्षण, ऊर्जा नीति और शहरी नियोजन को आपस में जोड़ते हुए एक समग्र रणनीति बनानी होगी। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को भी अपनी रणनीतियों को अद्यतन करना होगा। अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों की जलवायु विशेषताओं के अनुसार अलग योजनाएं बनानी होंगी।
दिल्ली-एनसीआर जैसे घने शहरी क्षेत्रों के लिए अलग मॉड्यूल हो जबकि हिमालयी क्षेत्रों के लिए भूस्खलन, बाढ़ और बर्फबारी पर केंद्रित योजनाएं हों। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए मौसम अनुकूल बीमा योजनाएं, सटीक पूर्वानुमान सेवाएं और प्राकृतिक आपदाओं से पहले सतर्कता की विश्वसनीय प्रणाली विकसित करनी होगी। बीती 24-25 मई की रात उत्तर भारत में आया तूफान न केवल भौतिक रूप से तबाही का प्रतीक था बल्कि यह जलवायु संकट की उस गंभीरता का द्योतक भी था, जिससे हम सब प्रभावित हो रहे हैं।
यदि आने वाले समय में ऐसी घटनाएं बढ़ती हैं तो इससे न केवल हमारी जीवनशैली प्रभावित होगी बल्कि भारत की कृषि, अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय संतुलन भी खतरे में पड़ सकता है। इसलिए हमें सतर्क रहना होगा, तैयारी करनी होगी और प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर चलना होगा, तभी हम सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए मौसम अनुकूल बीमा योजनाएं, सटीक पूर्वानुमान सेवाएं और प्राकृतिक आपदाओं से पहले सतर्कता की विश्वसनीय प्रणाली विकसित करनी होगी।
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