उदार


आदमी गया पर्वत के पास
उठा लाया एक पत्थर
उसे देखा, परखा
सहलाया
स्वरूप देकर सजीव सा बना दिया
अब वो वर्षा, शिशिर, ग्रीष्म में
अडिग रहता है
न घटता है, न बढ़ता है
न ग्रीष्म में पिघलता है
आंतरिक और बाह्य रूप से कठोर है
मनुष्य के प्रति कभी उदार
नही हुआ
जबकि मनुष्य सदैव उदार है
अपने हो चाहे, गैर
या पत्थर ।।
-------------------
- चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'
जांजगीर-चांपा (छत्तीसगढ़)।


No comments:

Post a Comment

Popular Posts