इच्छाशक्ति की कमी
इलमा  अज़ीम 
गंगा की सफाई का जिम्मा केन्द्र सरकार के सात मंत्रालयों पर है, लेकिन हकीकत यह है कि गंगा अपने मायके से ही प्रदूषित हो रही है। उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि गंगा कई स्थानों पर जल शोधन संयंत्र से छोड़े गए पानी से ही प्रदूषित है। एनजीटी को भी इस बारे में जानकारी है। 


यह स्थिति केवल गंगा की नहीं, बल्कि देश की दूसरी नदियों की भी है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, गंगा और यमुना जैसी नदियां कई दशकों से प्रदूषित हैं। परिणामस्वरूप, जलीय जीव संकट में हैं और मानव स्वास्थ्य भी गंभीर खतरे में है। अनियोजित शहरीकरण, बढ़ती आबादी और कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी नदियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है, साथ ही यह भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर रहा है। विज्ञान और पर्यावरण केन्द्र की रिपोर्ट के अनुसार, घरों, फैक्ट्रियों और संस्थानों से निकलने वाला 72 फीसदी गंदा पानी सीधे नदियों और झीलों में जा रहा है, जिससे पेयजल और अन्य उपयोग के लिए पानी का संकट बढ़ता जा रहा है। 
  
             एनजीटी की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में गंगा और उसकी सहायक नदियों में रोजाना 1100 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज गिर रहा है। राज्य में गंगा किनारे बसे जिलों के 225 नाले सीधे नदियों में मिल रहे हैं, जबकि केवल 101 नाले एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) से जुड़े हैं। देश की राजधानी दिल्ली की जीवन रेखा यमुना हजारों करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी गंदे नाले से भी बदतर हालत में है। 


मौजूदा स्थिति यह है कि नई भाजपा सरकार नये संकल्प और यमुना सफाई के नये एजेंडे के साथ यमुना के पुनरुद्धार और कायाकल्प में जुटी है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी दिल्ली के 16 औद्योगिक क्षेत्रों में एसटीपी की कमी पर हैरानी जताई है और कहा है कि यमुना में बिना ट्रीटमेंट के अपशिष्ट पदार्थ खुलेआम गिराए जा रहे हैं। हकीकत यह है कि यहां एक-तिहाई क्षमता से एसटीपी काम कर रहे हैं और 11 क्लस्टरों के लिए प्लांट ही नहीं हैं। इसके लिए एसटीपी की क्षमता तीन गुना बढ़ानी होगी और निगरानी तंत्र को चौकस करना होगा, तभी कोई बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।

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