स्थानीय  स्तर पर ही नहीं  ग्लोबल स्तर पर आंतकवाद का चैम्पियन है पाकिस्तान 

इमला अज़ीम 

 पाकिस्तान स्थानीय स्तर पर ही नहीं बल्कि  ग्लोबल स्तर पर आतंकवाद को चैम्पियन है। पूरे विश्व में कही पर भी आतंक की वाद की घटना में पाकिस्तान का नाम आना आम है। वैसे तो पहलगाम में आतकी द्वारा मारे गये 28 सैलानियों की हत्या करने के बाद भारत पाकिस्तान को  इस बार करारा सबक सिखाने की तैयारी कर चुका है। माना जा सकता है कि इस बार इस्लामाबाद और रावलपिंडी में बैठे लोगों की हेकड़ी इस कदर निकलेगी कि पाकिस्तानी आतंकवाद से सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि दुनिया को भी राहत मिलेगी।

पाकिस्तान कह रहा है कि पहलगाम आतंकी हमले में हमारा हाथ नहीं है। पाकिस्तान कह रहा है कि हम तो खुद ही आतंकवाद के खिलाफ हैं इसलिए आतंकवाद को कैसे फैला सकते हैं। जबकि असलियत यह है कि दुनिया के किसी भी कोने में होने वाले आतंकवादी हमले के तार कहीं ना कहीं पाकिस्तान से जुड़े हुए नजर आते हैं।  तमाम तथ्यों पर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि पाकिस्तान का आतंकवाद को प्रायोजित करने, शरण देने और निर्यात करने का जोरदार रिकॉर्ड है। पाकिस्तान सिर्फ सीमा पार से भारत में ही आतंकवादियों को नहीं भेजता बल्कि यह देश दशकों से अपनी ज़मीन का इस्तेमाल दुनिया भर में आतंकवाद, विद्रोह और कट्टरपंथी विचारधारा के लिए एक लॉन्चपैड के रूप में करता है। पाकिस्तान के नेता और अधिकारी भी समय-समय पर इस बात को स्वीकारते रहे हैं कि आतंकवाद वहां की सरकारी नीति रही है।



 2018 में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने संकेत दिया था कि 2008 के मुंबई हमलों में जोकि पाकिस्तान-आधारित इस्लामी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए गए थे, उसमें पाकिस्तानी सरकार की भूमिका हो सकती है।

परवेज़ मुशर्रफ़ ने स्वीकार किया था कि उनकी सेना ने कश्मीर में भारत से लड़ने के लिए आतंकवादी समूहों को प्रशिक्षण दिया था। उन्होंने माना था कि सरकार ने जानबूझकर आंखें मूंद लीं थीं क्योंकि वह भारत को बातचीत के लिए मजबूर करना और इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहती थी।

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने स्वीकार किया था कि देश ने तीन दशकों से अधिक समय तक आतंकवादी समूहों का समर्थन किया। उन्होंने इसे अमेरिका-नेतृत्व वाली विदेश नीति से जुड़ी एक "भूल" भी बताया।

 अफगानिस्तान की ओर देखें तो पता चलता है कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क को फंडिंग, प्रशिक्षण और सुरक्षित पनाह मुहैया कराई। जिससे इन समूहों ने अफगान नागरिकों, सरकारी ठिकानों और अंतरराष्ट्रीय बलों पर कई घातक हमले किए, जिनमें 2008 का काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमला और 2011 का अमेरिका दूतावास पर हमला भी शामिल है। वरिष्ठ पत्रकार कार्लोटा गॉल ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि "इस हमले को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया था और इसकी निगरानी की गई थी।''

रूस के मॉस्को में पिछले साल कॉन्सर्ट हॉल हमले की जांच के दौरान इस साल हमले में पाकिस्तान से जुड़ा लिंक सामने आया। रूसी अधिकारियों ने मास्टरमाइंड को एक ताजिक नागरिक के रूप में पहचाना और पाकिस्तान से संभावित कनेक्शन की जांच शुरू की है। रिपोर्ट्स में कहा गया कि हमलावरों को लॉजिस्टिकल या वैचारिक समर्थन पाकिस्तानी नेटवर्क से मिला हो सकता है।

ईरान की ओर देखें तो सामने आता है कि पाकिस्तान स्थित सुन्नी उग्रवादी समूह जैश उल-अदल ने ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत में बार-बार ईरानी सुरक्षा बलों पर हमले किए। इसके जवाब में ईरान ने 16 जनवरी 2024 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में मिसाइल और ड्रोन हमले किए, जिनमें जैश उल-अदल के ठिकानों को निशाना बनाया गया था। ईरान नियमित रूप से पाकिस्तान पर सुन्नी आतंकवादियों को शरण देने और उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाता रहा है।

ब्रिटेन में 7 जुलाई 2005 को लंदन में हुए बम धमाकों को अंजाम देने वाले चार ब्रिटिश इस्लामी आतंकवादियों का संबंध पाकिस्तान में प्रशिक्षण और कट्टरपंथी विचारधारा से था। जांच में यह बात सामने आई थी कि तीन हमलावर मोहम्मद सिद्दीक़ ख़ान, शहज़ाद तनवीर और जर्मेन लिंडसे ने 2003 से 2005 के बीच पाकिस्तान में समय बिताया था।



 बहरहाल, पहलगाम हमला मामले से अपना पलड़ा झाड़ रहे पाकिस्तान को भारत इस बार करारा सबक सिखाने की तैयारी कर चुका है। माना जा सकता है कि इस बार इस्लामाबाद और रावलपिंडी में बैठे लोगों की हेकड़ी इस कदर निकलेगी कि पाकिस्तानी आतंकवाद से सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि दुनिया को भी राहत मिलेगी।

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